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लाडली बेटी

ऋतु सिंह

सारा दिन घर में पड़ी रहती हो "एक काम ढंग से नहीं करना चाहती।" तुम्हें कितनी बार बोला है, मेरे तैयार होने से पहले नाश्ता टेबल पर रख दिया करो, तुम्हें ये एक ही बात रोज़ बतानी पड़ती हैं। शादी के 27 साल हो गए, पर तुम्हारी बेवकूफी कम नहीं हुई। तुम्हें तो घर पे बैठना रहता हैं, मुझे तो काम पर जाना है। अगर ये सब तुम जानबूझ कर करती हों तो याद रखना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
आज भी राहुल का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था। इन कटु शब्दों में अपना गुस्सा उतारते हुए, गीला तौलिया कुर्सी पर फेकते हुए राहुल "गुस्से से शोभा की तरफ देखने लगा।”
शोभा के लिए राहुल का बेवजह का गुस्सा करना कोई नई बात नही थी। वह महीने में तीन चार बार शोभा पर बेवजह बरस पड़ता था। अगर शोभा अपनी जरूरत के लिए राहुल से कुछ पैसे मांगती तो, वो भी इतना अहसान जता कर देता, जैसे मानो उस पैसे पर शोभा का कोई हक नही हो। धीरे-धीरे शोभा ने अपने सारी जरुरते और ख्वाहिशें उस घर की चार दीवारों में दफ्न कर दी थी। सिर्फ नौकरों की तरह काम करना, और बेवजह राहुल के गुस्से को खून का घूंट पी कर रह जाना। शोभा की आदत बन गई थी, पहले शादी के 4,5 साल शोभा ने इसका विरोध किया पर कुछ सुधार नहीं हुआ, तो अपनी किस्मत समझ कर समझौता कर लिया, अपनी छोटी मोटी जरुरते जो राहुल के दिए हुए पैसों से पूरा कर लेती थी।
जब राहुल में कोई बदलाव नहीं हुआ तो शोभा ने खुद को ही बदल दिया। अब राहुल के कुछ भी कहने से शोभा को कोई फर्क नही पड़ता था। राहुल की हर बात को वो नीचे सिर झुकाए सुन लेती थी। शादी के 5 साल तक शोभा ने पूरी कोशिश की थी, कि राहुल को बदला जाए, लेकिन फालतू का गुस्सा करना शोभा को भला बुरा कहना, मानो राहुल की आदत बन गई थी। कोई भी बात विवाद होता, राहुल शोभा को सीधा बोल देता, ज्यादा तकलीफ हो तो चली जाओ अपने मां बाप के घर, क्यों रहती हो मेरे साथ? इतना सब कुछ होने के बाद भी शोभा राहुल के साथ ही रहती थी। क्योंकि उसे अपनी बेटी की फिक्र थी। और वह जाती भी तो कहाँ? इस उम्र में वह अपने बूढ़े मां को परेशान नहीं करना चाहती थी। समाज और लोग क्या कहेंगे यह भी तो उसे सोचना पड़ता था। वह इतनी पढ़ी लिखी भी नही थी कि अपना और अपनी बेटी का पालन पोषण कर सके।
शोभा को अब अपनी फिक्र नहीं थी। उसे फिक्र थी तो अब अपनी शादी होने लायक बेटी की। शोभा नहीं चाहती थी, कि पति पत्नी के झगड़े की वजह से पूजा डिस्टर्ब हो। पूजा की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। अब उसके लिए अच्छी शादी का इंतजार था, शोभा ने कई रिश्ते देखें। लेकिन उसको अपनी बेटी लायक रिश्ता नहीं दिखता तो इनकार कर देती, दो तीन महीने बाद एक अच्छा रिश्ता आया। रिश्तेदारों और परिवार के लोगों ने भी बहुत तारिफ की थी। राहुल एक शाम अपनी बेटी के पास बैठकर बताने लगा।
पूजा बेटा बहुत अच्छा लड़का है। पढ़ा लिखा है, बहुत बड़ा घर है, उस घर में तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी, लड़के की बहुत अच्छी नौकरी हैं। ऐसे रिश्ते बार-बार नही आते बेटा। बस इस बार मना मत करना। पूजा अपने पिता से ज्यादा बात नही करती थी। शायद डरती थी, या नफरत करती थी। लेकिन आज वो अपनी पूरी हिम्मत इक्कठा कर बोली, "मुझे अभी शादी नहीं करना हैं, पापा। मैं नौकरी करना चाहती हूं। खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं। मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं। तो उसमें क्या बड़ी बात है। मैंने बात की है लड़के से वह तैयार है। वह तुम्हें किसी बात से नही रोकेगा। पर मेरा नौकरी करना ना करना उसके ऊपर क्यू डिपेंड रहेगा पापा?" पूजा ने पूछा।
मैं कह रहा हूं ना वहाँ तुम्हें किसी भी चीज की कोई कमी नहीं होगी, ऐसे रिश्ते बार-बार नही आते। मत ठुकरा बेटा, बहुत खुश रहोगी तुम वहाँ। पापा क्या मैं उतनी ही खुश रहूंगी, जितनी इस घर में मम्मी खुश है।" पूजा ने तंज कसते हुए कहा। आज तुम्हारी जुबान कुछ ज्यादा नही चल रही, राहुल गुस्से से आंखें बड़ी करते हुए बोला। पर पापा मुझे शादी ही नही करनी है, शादी के बाद अगर वो लड़का आपके जैसे निकला तो, मैं क्या करूंगी। मुझे आपके जैसा लड़का नही चहिए, जो बिना बात के मुझपर चिल्लाए, मुझे कुछ भी अपने पसंद का लेना हो तो,10 बार सोचना पड़े, कही वह नाराज ना हो जाए, मेरी तबीयत कैसी भी हो, उसे फर्क ना पड़े, रोटी थोड़ी मोटी हो जाए तो वह घर सिर पर उठा ले, उसकी चेक बुक ना मिले तो मुझे गवार बोले उसका दोष भी मेरे सिर मढ दे। हर छोटी मोटी बात में मायके जाने के लिए कहे। मैं इस घर के लिए पराई हूं। अगर मेरा जीवनसाथी भी आपके जैसे बात बात में मायके जाने को कहे तो बताइए मेरा अपना घर कौन सा है। जिसे वो अपना घर कहे।
राहुल का गुस्सा 4 सातवें आसमान पर था। पर उसके मुंह से एक शब्द भी नही फूटे, वह बस पूजा की बात सुन रहा था। "पूजा उतना ही बोलकर चुप नही हुई, आज पहली बार वह अपने पापा के सामने इतना कुछ कहने की हिम्मत जुटा पाई थी। पापा आपने हमेशा मम्मी के साथ गलत व्यवहार किया है। आप हमेशा अपने ऑफिस का गुस्सा मां पर उतार देते हैं। कभी इस बात की परवाह नही करते कि उन्हें कैसा लगता होगा, आपकी बातें सुन सुन कर मां ने अपना स्वाभिमान खो दिया है। पूजा ने राहुल का हाथ पकड़ा और बोली, पापा आप सिर्फ एक सवाल का जवाब दे दो क्या आप चाहेंगे कि मेरा जीवनसाथी ऐसा हो? अगर हां तो मैं शादी के लिए तैयार हूं।
कर दीजिए मेरा रिश्ता आज ही। और ना बनने दीजिए मुझे आत्मनिर्भर।
राहुल कुछ भी न बोल पाया चला गया। आज उसे शोभा के सामने जाने में शर्म आ रही थी। वह शोभा के साथ किए गए व्यवहार पर पछता रहा था। अगर मैं नही चाहता कि मेरी बेटी को ऐसा जीवनसाथी मिले जो उसे सुख ना दे सके, तो मैं शोभा के साथ मैं ऐसे कैसे कर रहा था, वो भी तो किसी की लाडली बेटी हैं। राहुल चलते यह भी सोच रहा था, और उसकी आंखों से आँसू बह रहे थे। शोभा को कुछ ही दिनों में अपने पति के अंदर काफी बदलाव दिखे, शोभा सोच रही थी, जो हिम्मत आज पूजा ने दिखाई, वह मैंने दिखाई होती तो आज परिस्थिति कुछ और होती।
अब पूजा पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी कर रही हैं। तीन साल बाद, उसके लिए अच्छा रिश्ता आया था, आज उसकी विदाई है। आज उसके विदाई पर पापा बोले बेटा तू हमेशा खुश रहेगी, क्योंकि तेरा पति तेरे पापा जैसा नहीं है, हो सके तो मुझे माफ कर देना। पूजा और शोभा को राहुल की यह बात सुनकर दोनो की आंखो से आँसू बहने लगे।
आज भी समाज में, मेरे और आप जैसे लोग हैं, गलत बात पर राय रखना या अपनी मन की बात कहना, औरतों का भी अधिकार होना चाहिए। आज सभी मां बाप से निवेदन है कि बेटी को आत्मनिर्भर बनने देना चाहिए, क्योंकि जरूरी नहीं परिस्थिति हमेशा एक जैसी हो। कभी किसी स्थिति में अगर उसको अपने लिऐ कुछ करना हो तो, वापस मां बाप का दरवाज़ा ना खटखटाना पड़े। यह भी जरूरी नहीं कि उसके लिए आपने जिसको चुना है। वह सही ही हो, जिस लड़की को अपने मां बाप की परवाह है। या तो वह उस घर में घुटते-घुटते रह जाएगी, या नही सह पाई तो जान दे देगी। हत्यारा बनने से बदलाव कही ज्यादा अच्छा है।

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