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लाल चूड़ियाँ

सुनीता पाण्डेय

शाम हो चली थी। मैं चाय बना कर अपनी बालकनी में इत्मिनान से चाय पी रही थी। जो कि मेरी पसंदीदा शांत जगह है। कुछ फूलों के पौधे लगाए हुए थे और उनसे आती खूशबू वातावरण को सुगंधित बना रही थी।
अचानक मेरी नज़र सामने के फ्लैट पर गई जो काफी समय से खाली था। वो फ्लैट हमारे फ्लैट से साफ-साफ दिखाई देता था, क्योकि बिल्डिंग की दूरी ज़्यादा नही थी। परदे अगर ना हो तो खिड़की से पूरा घर देख सकते है। उस बिल्डिंग के तीन कमरे दिखाई देते थे। एक हॉल, बीच का किचन और एक रूम मैं कभी गई नही उस बिल्डिंग में लेकिन देखने से लगता था, 2bhk ही होगा। उसमें कुछ हलचल दिखाई दी। मैने सोचा काफी दिनों से बंद है। सफाई करने आये होंगे। मैंने ज़्यादा ध्यान नही दिया और चाय पी कर अपने कामों में लग गई।
अगला दिन वही सुबह के कामों में निकल गया। शाम मैं चाय पीने फिर बालकनी में आ गई। मेरी नज़र सामने गई तो कुछ सामान दिखा। कोई शिफ्ट हुआ होगा तभी किचन में एक 23, 24 साल की लड़की दिखाई दी। सूट पहने हुए, मांग में सिंदूर, हाथों में चूड़ियां वो हँस-हँस कर पास में खड़ी एक महिला से बात कर रही थी।
तभी मेरे कानों में आवाज़ पड़ी भाभी इधर आना मुझे हेल्प चाहिए। मेरी नज़र हॉल की तरफ गई जहाँ एक लड़का जो कि उसकी ही उम्र का होगा कुछ सरकने की कोशिश कर रहा था। वो लड़की उस महिला को कुछ बोल कर हॉल में आ गई और उस लड़के की मदद करने लगी।
मुझे अच्छा तो नही लग रहा था लेकिन नज़र चली ही जा रही थी उस तरफ। तभी एक और लड़का सामने के दरवाज़े से आता दिखाई दिया। जो शायद उस लड़की का पति होगा। उसके हाथ मे बैग था। परदे न होने की वजह से मुझे सब दिखाई दे रहा था। अब मुझे अच्छा नही लगा रहा था और मेरी चाय भी खत्म हो गई थी। मैं वापस आ कर अपने कामों में लग गई।
सुबह पौधों को पानी डालने लगी तो फिर सामने की तरफ नज़र उठ गई। वह सब चाय पीते हुए और आजू बाजू देखते हुए बातें कर रहे थे। मैं भी पानी डाल कर वापस आ गई। शाम को चाय पीने फिर मैं वही जाकर बैठ गई। सामने घर में परदे लग गए थे। बस किचन में काम करते वो लड़की और महिला दिख रहे थे।
प्यारा सा परिवार है देख कर अच्छा लगा। एक माँ, दो बेटे और प्यारी सी बहू जो दिन भर इधर-उधर तितली की तरह उड़ती फिरती थी। उन सबके हँसने की आवाज़ें मेरे घर तक आ ही जाती थी।
एक साल बीत गया समय पंख लग कर उड़ गया।
एक दोपहर मैं अपना सब काम कर के बैठी ही थी कि कही से रोने की आवाज़ आई। मैं उठ कर देखने लगी कि कहाँ से ये आवाज़ आ रही है। देखा तो बालकनी की तरफ से आवाज़ आ रही थी। मैने खिड़की के पर्दा ज़रा सा सरकाया तो देखा सामने वाले घर के परदे खुले हुए हैं और काफी लोगो की भीड़ है। मेरा मन एक पल को बैठ गया कि क्या हुआ होगा। कहीं वो महिला, इतना सोच कर मैंने अपने दोनों हाथों को जोड़ने के लिए जैसे ही उठाये वो महिला रोती हुई दिखाई दी जो की उसके बेटे से लिपट कर ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी।
मैं एक दम से शॉक में आ गई कि हुआ क्या। वो लड़का भी रोये जा रहा था। तभी मेरी नज़र कोने में खड़ी उस लड़की पर गई जो एक दम सुन्न दिख रहीं थी और एक महिला उसको गले से लगाये रो रही थी।
उफ़्फ़ मेरा तो दिल वही का वही जम सा गया। मेरी समझ में सब कुछ आ गया कि उस घर का बड़ा बेटा।
सोच के ही मेरी हालत खराब हो गई। मैं धम्म से पलंग पर बैठ गई। कोई रिश्ता नही फिर भी पता नही मुझे उस बच्ची का ख़याल बार-बार आ रहा था। उससे जुड़ाव से महसूस कर रही थी मैं। लग रहा था कि अभी दौड़ कर जाऊँ और उसको गले से लगा लूँ। मेरी पलके भीग गई और आँसू अपने आप बहने लगे।
अब क्या ही कर सकते है जो होने था हो गया। मेरी हिम्मत ही नही हुई कि मैं कुछ देख सकूँ। रोने की आवाज़ बराबर आ रही थी और मेरे आंखों से ऑंसू बहे जा रहे थे। उस बच्ची का हँसता खेलता चेहरा मेरे सामने बार-बार आ रहा था।
शाम हो चली थी और रोने की आवाज़ भी नही आ रही मुझे समझ मे आ गया कि ले गए होंगे उसको। आज मेरा चाय पीना का भी मन नही किया। शाम से रात हो गई और फिर सुबह मेरी हिम्मत ही नही हुई बालकनी में जाने की। लोगों से पता चला कि एक्सीडेंट हुआ था और वही डेथ हो गई।
अगले दिन पौधों को पानी डालने के लिए मैं बालकनी में गई तो नज़र सामने वाले घर पर गई। सब कुछ शांत था, कोई नही दीखा मुझे। तभी किचन में वो बच्ची दिखाई दी। मैं उसे देख कर दंग रह गई 24 घंटे भी नही हुए थे। उसका चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया था, आँखें सूजी हुई और एक दम बेजान लग रही थी। पानी पी कर वो वापस चली गई।
मेरी पलकें भीग गई उसे ऐसा देख कर। मैं भारी मन से अपने कामों में लग गई। दिन बीत गए तीजे की बैठक, दसवीं तेहरवीं सब हो गई। अब कोई दिखाई भी नही देता था और ना कोई आवाज़ सुनाई देती। मैं भी चुप चाप पहले की तरह चाय पीती और आकर अपने काम करती। वो बच्ची मुझे काफ़ी दिनों तक दिखाई नही दी।
एक दिन ज़ोर की आवाज़ से मेरी नींद टूटी गई। मैने देखा तो कोई बोल रहा था। इससे कहो, अपने माँ-बाप के पास चली जाए। जो इसको शादी कर के लाया था वो तो रहा नही तो अब ये क्या करेगी। मैं इसका चेहरा देखना ही नही चाहती और रोने लगी।
मम्मी, तभी दूसरी आवाज़ सुनाई दी। भैया चले गए तो इसमें इनका क्या कुसूर है। इन्होंने भी तो अपना पति खोया है। देखो ज़रा इनकी तरफ डेढ़ साल ही तो हुआ था। आप सोचो इनको कैसा लगता होगा? और ये इनका भी घर है ये कही नही जाएंगी।
तू मुझसे ऊंची आवाज में बात कर रहा है और वो भी इसके लिए जो तेरे भैया को खा गई। वो महिला फिर ज़ोर से बोली।
मम्मी, फिर से वो ज़ोर से बोला बस हो गया। अब एक शब्द और नही। वो अपनी बालकनी में गया और वो लड़की भी। मैंने देखा दोनों चुपचाप एक एक कोना पकड़ कर खड़े थे। मैं अंदर आ गई।
अब ये रोज़ का हो गया। वो महिला किसी न किसी बात को लेकर उस बच्ची को सुनाती। 6 महीने गुज़र गए वो लड़का जॉब करने लगा। उस बच्ची में ग़ज़ब का संयम था। कुछ नही कहती, ना उसकी आवाज़ आती। बस किचन में काम करती दिखाई देती और घर के और काम। मुस्कुराहट उसके चेहरे से गायब हो गई थी और अजीब सा पीला पन उसके चेहरे पर आ गया था।
भगवान भी क्या-क्या कर देते हैं फूल सी बच्ची एक दम पत्थर बन गई। उसे देख कर मेरी पलकें भीग जाया करती थी।
पूरा साल बीत गया। यही सिलसिला चलता रहा। वो महिला उस पर सारे दिन गुस्सा करती और वो बच्ची बस सिर झुकाए काम करती रहती।
एक दिन शाम को चिल्लाने की आवाज़ आई। बस हो गया मम्मी बहुत सुना लिया आपने और बहुत सुन लिया इन्होंने। आपको इनसे परेशानी क्या है। ये सब काम करती है जैसा रख रही हो वैसे रह रही है।
कभी देखा इनके चेहरे की तरफ क्या से क्या हो गया है। पहले तो आप इनको इतना प्यार करती थी। दिन भर हँसी मज़ाक कितनी तारीफ करती थी। एक पल भी नही रहती थी आप इनके बिना। अब क्या हो गया? भैया चले गए तो इनकी क्या गलती। हाथ जोड़ता हूँ मैं आपके जीने दो इनको प्लीज। वरना ये यू ही घुट-घुट कर मर जाएंगी।
इतना कुछ साफ-साफ सुनाई दे रहा था मुझे। बहुत अच्छा लगा मुझे कि उस बच्ची का साथ देने को कोई तो है।
उस दिन के बाद कोई आवाज़ सुनाई नही दी मुझे। शाम मैं रोज़ ही चाय पीने बालकनी में आती लेकिन कुछ सुनने को नही मिला। मैंने मन में सोचा बहुत अच्छी सोच का लड़का है बहुत अच्छे से समझा दिया अपनी मम्मी को।
समय बीत गया एक दिन मैने देखा कि सामने वाले घरके परदे खुले हुए है। रोशनी लगाई जा रही है। खूब चहल-पहल हो रही है। घर मे डेकोरेशन का काम हो रहा है। किचन में वो महिला किसी को कुछ बता रही है और बहुत खुश भी है। समझते देर नही लगी कि शादी होगा बेटे की। ऐसा डेकोरेशन शादी में ही होता है। मैं भी खुश थी। मेरे दिल से उस बच्चे के लिए दुआएं निकली अपनी चाय खत्म कर के अपने कामो में लग गई।
खूब शोर शराबा हो रहा था। गाने की आवाज़े आ रही थी। शायद रात भर ऐसा ही चलेगा। मैं भी काम निबटा कर सो गई।
सुबह कुछ मंत्रों की आवाज़ सुनाई दी। मैने अपना पर्दा हटा कर देखा तो सामने वाले घर मे पूजा चल रही थी।
शादी हो गई होगी। मैं सोच कर मुस्कुरा दी। तभी मुझे वो लड़का दिखाई दिया। जो पंडित के सामने आ कर बैठ गया। मेरे दिल से उसके लिए दुआएं निकली खुश रहो हमेशा।
तभी मेरी नज़र आती हुई लड़की पर पड़ी। मेरा मुँह खुला रह गया। वो वही बच्ची थी मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया, हाथों में चूड़ियाँ लाल रंग की साड़ी। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी। वो महिला उसको उस लड़के के पास बैठा रही थी। मेरी आँखों मे आँसू छलक आये। जैसे वो मेरी बच्ची हो। मेरे होंठों पर मुस्कुराहट आ गई। एक अजीब सा सुकून दिल को मिला जैसे ना जाने कितने दिनों से सूखी धरती को बारिश के पानी ने भिगो दिया हो। मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे और दिल हज़ारो दुआएं दिए जा रहा था।

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