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वक्त का बदला

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

एक बार की बात है। एक बूढ़ा बाप अपने बेटे और बहू के साथ रहने के लिए उनके शहर गया। उनके अत्यंत बूढ़े हो जाने के कारण उनके हाथ कांपने लगे थे और उन्हें दिखाई भी कम देता था। उनके बेटा और बहू एक छोटे से घर में रहते थे। उनका पूरा परिवार और उसका 4 वर्ष का एक पोता भी था।
वह हर रोज एक साथ बैठकर ही खाना खाते थे। तो वह भी उनके साथ खाना खाने लगा। लेकिन बूढ़े होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बहुत दिक्कत होती थी। खाते समय चम्मच से दाने नीचे गिर जाते थे और उनका हाथ कांपने लगता था। कभी-कभी हाथ से दूध भी गिर जाया करता था। तो बेटा बहू कुछ दिनों तक यह सब सहन करते रहे। पर कुछ दिनों बाद उन्हें अपने पिता की इन कामों पर से नफ़रत होने लगी। तभी बेटे ने कहा कि हमें इनका कुछ करना पड़ेगा और बहू ने भी उनकी हां में हां मिलाई। और कहा आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा करते रहेंगे।
इनकी वजह से हमारे कितनी चीजों का नुकसान भी हो गया है और यह सब मुझसे देखा नहीं जाता। तो अगले दिन बेटे ने अपने पिता के लिए कमरे के कोने में एक पुराना मेज़ लगा दिया। अपने बूढ़े बाप से कहा कि पिताजी आप यहां पर बैठ कर खाना खाया करो तब से बूढ़ा बाप अकेले ही बैठ कर अपना भोजन करने लगा। यहां तक कि उसे खाने और पीने के लिए भी लकड़ी के बर्तन दिए गए ताकि उनके टूटने पर उनका नुकसान ना हो। और वह तीनों लोग पहले की तरह ही भोजन करने लगे।
जब कभी बेटा और बहू अपने बूढ़े बाप की तरफ देखते थे तो उनकी आंखों में कुछ आंसू आ जाते थे। लेकिन फिर भी उन्होंने अपना मन नहीं बदला। वे उनकी छोटी-छोटी गलतियों के कारण उन्हें ढेर सारी बातें सुना देते थे। उनका 4 साल का बेटा यह सब कुछ बड़े ध्यान से देखता रहता था। इसलिए एक दिन खाने से पहले छोटा बेटा अपने माता-पिता के साथ जमीन पर बैठ गया और कुछ करने लगा। तभी बेटे के बाप ने पूछा कि तुम यह क्या बना रहे हो तो बच्चे ने मासूमियत के साथ जवाब दिया कि मैं आप लोगों के लिए लकड़ी का एक कटोरा बना रहा हूं। ताकि जब आप बूढ़े हो जाओ तो मैं आपको इसमें खाना दे सकूं और यह कह कर वह बच्चा अपने काम पर फिर से लग गया।
इस बात पर उसके माता-पिता को बहुत गहरा असर पड़ा। उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उन दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ वे दोनों बिना कुछ बोले ही समझ चुके थे कि उन्हें क्या करना है। उस रात वे अपने बूढ़े पिता को वापिस डिनर टेबल पर ले आए और उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया।
हमारी जिंदगी भी बिल्कुल ऐसे ही हैं हम अच्छे कर्म करें या बुरे कर्म। हमें अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है। इसीलिए समय रहते ही अपने बुरे कर्मों को अच्छे कर्मों में बदल दें क्योंकि अगर वक्त ने बदला तो बहुत तकलीफ होगी।

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