top of page

वयःसंधि

श्याम आठले

सुबह के दस बजे थे। मैं अपनी क्लिनिक में अपनी केबिन में आकर बैठा ही था और डाक देख रहा था कि सहायक ने आकर बताया कि बलबीर चोपड़ा जी मुझसे मिलने के इच्छुक हैं। मैंने उन्हें तुरंत केबिन में भेजने को कहा। उनका चेहरा देखते ही मेरी आंखों के सामने पिछले दो वर्षों के उनके और उनके बेटे कुणाल के साथ की सभी घटनाएं चलचित्र के सामान घूम गईं।
पहले दिन बलबीर जी अकेले ही आए थे। उन्होंने अपने सोलह वर्षीय बेटे के बारे में कुछ बातें बताई और आजकल उसके अति उग्र होने के बारे में बताया। मैं बोला था कि मुझे उससे एक बार मिलवा दो सब ठीक हो जाएगा। वे बोले, आपके क्लिनिक में तो आना मुश्किल है। आपका बोर्ड देखते ही वो कहेगा, पापा क्या मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ गया है जो कि मुझे प्रसिद्ध मनोरोग विशेषज्ञ समर्थ को दिखाने लाएं है। तब मैंने कहा था कि ठीक है। आप मुझे अपने मित्र के रूप में चाय पर बुलाइए। बाकी मैं सम्हाल लूंगा।
उनके घर पर मैंने देखा कि एक लगभग सोलह-सत्रह वर्षीय हैंडसम युवक अपने पापा के साथ मुझसे मिलने आया। औपचारिकताओं के बाद बलवीर जी चाय की व्यवस्था के नाम पर अंदर चले गए। अब मैं और कुणाल अकेले ही थे। मैंने उससे, उसके और उसकी हॉबीज के बारे में पूछा। वो असहज सा बता रहा था। तभी मैंने उसे अपना परिचय मनोरोग विशेषज्ञ के रूप में दिया और आश्वस्त किया कि मेरी और उसकी बातें हम दोनों के बीच ही रहेंगी। इसके बाद वो खुल गया और ऐसी-ऐसी बातें बताई जो शायद वो अपने पापा से कभी भी नहीं बताता। कुछ सवाल उसने यौन सबंधी भी पूछे और अपनी शंका का समाधान किया। अब उसके चेहरे पर संतुष्टी का भाव था। तभी मैंने अपनी बैग से उसे एक किताब निकाल कर दी जिसका नाम था 'वयःसंधि' और कहा कि इसको पढ़ने से उसकी सारी बची-खुची शंकाओं का समाधान हो जाएगा बलबीर जी की आवाज से मैं वर्तमान में आ गया।
बलबीर जी कह रहे थे "समर्थ जी, आपकी बातों ने तो कुणाल पर जादू का सा असर किया। ये मिठाई लीजिये। बेटे का एडमिशन कानपुर के आईआई टी कॉलेज में हुआ है। आपने उसे सही समय पर उचित सलाह दी जिसे उसका जीवन संवर गया। वर्ना वो "वयःसंधि" की समस्याओं का शिकार हो जाता।

*******

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page