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वाणी, चरित्र का प्रतिबिंब है।

व्यक्ति स्वच्छ, साफ वस्त्र धारण करता है, आकर्षक जूते-चप्पल पहनता है, आधुनिक व बड़ी गाड़ी का उपयोग करता है, विशाल, सुंदर भवन का निर्माण करता है। यह सब व्यक्ति अपने संगी-साथियों को आकर्षित करने और उनपर अपना प्रभाव छोड़ने के लिए ही करता है। ऐसे मोहक पहनावे से दूसरा व्यक्ति आकर्षित हो सकता है। इस आकर्षण को स्थाई बनाए रखने के लिए व्यक्ति के आंतरिक गुणों की सुंदरता का भी अत्यधिक महत्व हो जाता है। इन आंतरिक गुणों में प्रथम है, मधुर वाणी। बाहरी साज सज्जा होने के बाद यदि वाणी मधुर नहीं, तो व्यक्ति का आकर्षण चिरस्थाई न हो पाएगा। वाणी ही मनुष्य के चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब होती है।
व्यक्ति के बोले गए शब्दों व उसके द्वारा किए गए कृत्यों का वास्तविक विश्लेषण व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का दर्पण बन जाता है। व्यक्ति जब दूसरों के लिए अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो इन शब्दों से वह स्वयं अपने उद्देश्य से भ्रमित होकर अपनी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाता है। विशुद्ध सात्विक विचारों को प्रिय एवं मधुर शब्दों में व्यक्त कर मनुष्य दूसरों पर अत्यंत गहन प्रभाव छोड़ जाता है। कहा जाता है कि मधुर वाणी व प्रिय शब्दावली का प्रयोग कर व्यक्ति शत्रु को भी परास्त कर सकता है। यह गुण ही मनुष्य की इंद्रियों का दैवीय आभूषण है।
अप्रिय व कटु वचनों का प्रयोग ही मनुष्य के कर्मों का निर्धारण भी करता है। मधुर वचनों के प्रयोग से मनुष्य सद्गति को प्राप्त कर सकता है। अतः मधुर वचनों के प्रयोग को एक साधना के तौर पर अपने जीवन में उतार लिया जाना चाहिए और यह निश्चित कर लेना चाहिए कि सदा सर्वदा मीठी बात ही बोलूंगा, कम बोलूंगा, और सब कुछ मधुरता की मिश्री से युक्त करके ही बोलूंगा। कड़वी बातों से जो भयंकर प्रभाव पड़ता है, वह सर्वविदित है। किसी से कटु, अप्रिय, अभद्र शब्द न बोलिए, अपनों से छोटों, नौकरों, बालको यहां तक कि जानवरों तक को अपशब्द द्वारा न पुकारिये।
यदि अपशब्दों के प्रयोग से होने वाले प्रभाव की वैज्ञानिकता पर विचार किया जाए, तो हम पाते हैं कि मनुष्य द्वारा बोले गए अपशब्द, उस मनुष्य के आस-पास ही अपशब्दों का एक विद्युत चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर देते हैं। वह मनुष्य स्वयं उस विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के केंद्र में स्थित होता है। अतः इन विद्युत चुंबकीय तरंगों के कुप्रभाव का सर्वाधिक असर बोले गए व्यक्ति के ऊपर ही पड़ता है। अपशब्दों के लगातार प्रयोग से विद्युत चुंबकीय तरंगों का घेरा घना होता चला जाता है। परिणाम स्वरुप उसका प्रभाव भी तीव्रतम हो जाता है। अंततः मनुष्य इन तरंगों के प्रभाव से अपने चरित्र व गरिमा की बलि देकर अशिष्ट और दुराचारी व्यक्ति के रूप में समाज में स्थापित हो जाता है।
मधुर वचन सुनकर किसका ह्रदय प्रसन्न नहीं हो जाता। संसार की प्रत्येक वस्तु प्रेम से प्रभावित होती है। मनुष्य अपनी भावनाओं का अधिकांश प्रदर्शन वचनों द्वारा ही करता है। बालक की मीठी-मीठी बातें सुनकर बड़े-बड़े विद्वानों तक हृदय खिल उठता है। तभी कहा गया है कि मधुर वचन मीठी औषधि के समान लगते हैं। तो कड़वे वचन तीर के समान चुभते हैं।
शिशु से लेकर वृद्ध तक संपूर्ण जगत मीठे वचनों को ही सर्वाधिक पसंद करते हैं। मधुर वचनों से मनुष्य तो क्या देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। मीठे का प्रभाव अत्यंत तीव्र व दूरगामी होता है। यही कारण है कि भोजन में मीठे की प्रबलता होती है। मधुर भाषण जैसी मिठास भला कहां प्राप्त की जा सकती है। स्वयं रहीम दास जी ने भी अपने मुख से कहा है कि
कागा काको धन हरे, कोयल काको देय।
मीठे वचन सुनाय कर, जग अपना कर लेय।।
अर्थात न तो कौवे ने हमारी कोई संपत्ति हड़प ली है और न ही कोयल ने हमें कोई विशेष संपत्ति दे दी है। यह तो केवल उन दोनों की वाणी का प्रभाव है, कि कोयल को हम कितने ध्यान से सुनते हैं, जबकि कौवे को देखते ही दुत्कार देते हैं।
रिचर्ड कार्लसन ने कहा, "जब हम किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना करते हैं या उस व्यक्ति के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, तो ऐसे शब्दों का कुप्रभाव, अमुक व्यक्ति के स्थान पर स्वयं के ऊपर ही अधिक पड़ता है।" जो कि वैज्ञानिकता के आधार पर भी उचित प्रतीत होता है।
एक अन्य विचारक के अनुसार, “प्रिय भाषण में वशीकरण की महान शक्ति होती है। इससे पराए भी अपने हो जाते हैं। सर्वत्र मित्र ही मित्र दृष्टिगोचर होते हैं। मधुर भाषण एक दैवीय वरदान है। शास्त्रों में इसे सर्व शिरोमणि कहा जाता है।”
माधुर्य रस से ओतप्रोत, सत्य, हितकर व प्रिय भाषण एक सिद्धि के रूप में कार्य करता है। यह आत्म-संयम, स्वार्थ-त्याग एवं प्रेम भावना से ही उत्पन्न हो सकता है। जिस व्यक्ति के मन, वचन व कर्मों में दूसरों के प्रति मधुर भाव है, उसे ही इस वशीकरण विद्या का पूर्ण ज्ञाता माना जा सकता है। ऐसे व्यक्ति के हाथ में जड़ से लेकर चेतन तक सभी को वश में कर लेने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
डेल कार्नेगी के अनुसार, “कोई भी मूर्ख आलोचना, निंदा और अपशब्दों का प्रयोग कर, शिकायत कर सकता है, लेकिन माधुर्य, प्रेम व आत्मसंयम से ओतप्रोत वाणी का प्रयोग एक सशक्त, आचरणवान व धर्मवीर मनुष्य ही कर सकता है।”
जो व्यक्ति मधुर वचन नहीं बोलते वह अपनी वाणी का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति संसार में अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को खो बैठते हैं। तथा अपने जीवन को कष्टकारी बना लेते हैं। कड़वे वचन से उनके बनते काम बिगड़ जाते हैं तथा वे प्रतिपल अपनी विरोधी शक्तियों को जन्म देते रहते हैं। उन्हें सांसारिक जीवन में सदा अकेलापन झेलना पड़ता है। तथा मुसीबत के समय लोग उन से मुंह फेर लेते हैं।
मधुर वचन बोलने वाले व्यक्ति सबको सुख शांति देते हैं। सभी ऐसे लोगों का साथ पसंद करते हैं। इससे समाज में पारस्परिक सौहार्द की भावना का संचार करने में मदद मिलती है। सामाजिक मान प्रतिष्ठा और श्रद्धा का आधार स्तंभ वाणी ही है। अपनी वाणी का प्रयोग हम जिस प्रकार करते हैं हमें वैसा ही फल मिलता है। हम अपने वचनों से अपनी सफलता के द्वार खोल सकते हैं या असफलता को निमंत्रण दे सकते हैं।
मधुर बोलिए और उसके मीठे फल आपको मिलेंगे। मधुर भाषण करने वाले की जिव्हा पर साक्षात सिद्धियां निवास करती है। यह दैवीय संपत्ति का लक्षण है। शास्त्रकारों का मत है कि “सत्य बोलो और मधुर बोलो। कटु सत्य कभी मत बोलो।“ यह भी परम सत्य है कि मधुर वाणी निंदा, छिद्रान्वेषण, परदोषदर्शन, आलोचना, खरी-खोटी, नीचता, ईर्ष्या इत्यादि से बहुत दूर रहती है। इसका प्रमुख उद्देश्य दूसरों के सद्गुणों, उच्च भावनाओं, सदविचारों को प्रकट करना है। मधुर वाणी से आयु में भी वृद्धि होती है।
सभी प्राणियों का यह मानवोचित कर्तव्य है, कि दूसरे की भावनाओं का आदर करें। ऐसा करने से मनुष्य के मनुष्य से गहन गंभीर भाव परक व मधुर संबंध बनते हैं। कहां भी जाता है कि हम जैसे व्यवहार की आशा दूसरों से अपने लिए करते हैं, हमें स्वयं भी दूसरों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। तभी कहा गया है
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।
मनुष्य जितना ही प्रिय भाषण का उच्चारण एवं श्रवण करेगा, उतना ही शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करेगा। इसके विपरीत खोटे वचन, खोटे सिक्कों के समान कार्य करते हैं। वह आप जिसको भी देंगे, वह आपको सूद समेत लौटा देगा। अतः मीठी वाणी में ही आनंद और माधुर्य है।
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