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विवेकानंद का जन्म

मुकेश ‘नादान’

इस संसार में समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया। इन महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। अपने अनेक सामाजिक कार्यों एवं शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के कारण आज स्वामी विवेकानंद संपूर्ण विश्व में उच्च स्थान रखते हैं।
12 जनवरी, 1863 को प्रातःकाल में इस महापुरूष ने भारत की पावन धरती पर जन्म लिया। इस समय भारत में ब्रिटिश शासकों की हुकूमत थी और यहाँ के निवासी उनकी गुलामी के लिए मजबूर थे।
कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में कायस्थ वंश के दत्त परिवारों में इनका परिवार अत्यंत समृद्ध था। इनके परदादा श्री राममोहन दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिदृध वकील थे। श्री राममोहन के इकलौते पुत्र दुर्गाचरण भी अच्छे वकील थे, किंतु दुर्गाचरण धनलोलुप न होकर धर्मानुरागी थे। उन्होंने केवल पच्चीस वर्ष की आयु में संन्यास लेकर घर का त्याग कर दिया था, तब उनकी पत्नी की गोद में उनके एकमात्र पुत्र विश्वनाथ थे। उन्होंने भी वयस्क होकर वकालत का पैतृक धंधा अपनाया, लेकिन पारिवारिक परंपरा के अनुसार शात्र-चर्चा तथा अध्ययन के प्रति उनका विशेष अनुराग था। इन्हीं विश्वनाथ की पत्नी भुवनेश्वरी देवी ने स्वामी विवेकानंद जैसे महान्‌ पुत्र को जन्म दिया।
इनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था, किंतु इनकी माँ इन्हें 'वीरेश्वर' कहकर बुलाती थीं। नरेंद्र के जन्म से पूर्व भुवनेश्वरी देवी ने दो पुत्रियों को जन्म दिया था। बेटे का मुँह देखने की उनके मन में बहुत अभिलाषा थी। पुत्र-कामना से वे एक दिन इतनी ध्यानमग्न हुई कि उन्होंने साक्षात्‌ महादेव के दर्शन किए। उन्होंने देखा, भगवान्‌ शिव शिशु के रूप में उनकी गोद में आ बैठे हैं। स्वामी विवेकानंद के पैदा होने पर उन्हें यह विश्वास हो गया कि उनका बेटा शिव की कृपा से ही हुआ है। घर-परिवार में स्वामीजी को 'विले' नाम से पुकारा जाता था।
नरेंद्र के बाद उनके दो भाई तथा दो बहनें और हुए। भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं, जबकि विश्वनाथ दत्त में धार्मिक कट्‌टरता लेशमात्र भी नहीं थी। नरेंद्र का स्वभाव भी ऐसा ही था।
नरेंद्र बचपन से ही घर में होनेवाले लोकाचार तथा देशाचार के नियमों को नहीं मानते थे। इस कारण उन्हें माँ की बहुत डाँट खानी पड़ती थी। नरेंद्र का बाल मस्तिष्क यह समझ पाने में असमर्थ था कि आखिर भात की थाली छूकर बदन पर हाथ लगाने से क्या होता है? बाएँ हाथ से गिलास उठाकर पानी क्यों नहीं पीना चाहिए? या ऐसा करने पर हाथ क्यों धोना पड़ता है?
जब कभी नरेंद्र अपने मस्तिष्क में उठते प्रश्नों के उत्तर अपनी माँ से जानना चाहते, तो वे संतोषजनक जवाब नहीं दे पाती थीं। ऐसे में नरेंद्र लोकाचारों का उल्लंघन करके देखते कि आखिर इससे क्या होता है?
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