top of page

व्यस्त रहो, मस्त रहो।

डॉ. कृष्ण कांत श्रीवास्तव

दरवाजा बंद करके वर्मा जी भी सोफे पर आकर धम्म से बैठ गए। शांता जी की आंखों से भी आंसू तो बह रहे थे। शांता जी ने एक नजर पूरे घर की ओर डाली, सारा घर अस्त-व्यस्त हो रहा था। रसोई में लड्डुओं का डब्बा जस का तस रखा था। रात भर जागकर शांता जी ने बड़े मन से देसी घी के लड्डू बनाए थे। शांता जी के बेटा, बहू दुबई में रहते थे। उनके दोनों जुड़वां पोते आठवीं क्लास में पढ़ते थे। जब से उन्होंने अपने घर आने की सूचना दी तो शांता जी की खुशी का कोई ठिकाना न था। बच्चे आखिर 4 साल बाद 20 दिन के लिए दिल्ली आ रहे थे। शांता जी की बेटी भी पूना में रहती थी। भाई-भाभी के आने की सूचना पाकर बेटी माधवी ने भी शनिवार इतवार को दिल्ली आकर भाई भाभी से मिलने का प्रोग्राम बनाया।
माधवी की शादी पर 4 साल पहले ही बिट्टू घर आया था। वर्मा जी की घर से थोड़ी ही दूर पर किराने की दुकान थी। वह तो दुकान पर व्यस्त रहते थे लेकिन शांता जी बच्चों को बहुत मिस करती थी। बच्चों के आने पर शांता जी बहुत खुश हुई। 4 साल में बच्चे कितने बड़े हो गए थे। लेकिन वह अब उनसे बहुत ज्यादा बात नहीं कर रहे थे और सिर्फ अपने मोबाइलों में ही व्यस्त थे। बहुरानी भी दुबई से शांता जी के लिए एक सोने की चेन लाई थी। बच्चों को एक बार फिर घर में देखकर मानो घर फिर से सजीव हो उठा था। शांता जी ने बच्चों की पसंद का खाने का बहुत सारा सामान बना रखा था लेकिन किसी ने भी ज्यादा कुछ नहीं खाया।
बहुरानी ने बताया कि उसके मायके में उसके चाचा की बेटी की शादी में उन्हें शामिल होना है इसलिए दूसरे ही दिन उन्होंने आगरा के लिए कैब बुला रखी थी। यह बात आने से पहले तो उन्होंने शांता जी को नहीं बताई थी। शांता जी के पास बहुत सी बातें थी जो कि वह बच्चों से करना चाहती थी लेकिन सब बच्चे अभी अपने कमरे में ही व्यस्त थे। कमरे से बाहर निकले तो बिट्टू ने पापा से गाड़ी की चाबी मांगी क्योंकि उन्होंने आगरा जाने के लिए मार्केट से शायद कुछ सामान लेना था। कमरे से बाहर निकले तो बिट्टू और बहु रानी दोनों ही मार्केट चले गए और रात देर तक ही आए। रघु और राघव अब भी मोबाइल के गेम में ही व्यस्त थे। शाम को अपने खाने के लिए उन्होंने डोमिनोज़ से पीज़ा मंगवा लिया था। बिट्टू भी बाहर से ही खाना खाकर आया था। रात को शांता जी ने सारा खाना वैसे ही फ्रिज में रख दिया‌। दूसरे दिन वे चारों आगरा के लिए रवाना हो गए थे। बहुरानी ने जाते हुए कहा कि वह अपने मायके मैं 1 सप्ताह रहेंगी।
दूसरे दिन शनिवार को उनकी बेटी माधवी अपने पति के साथ पुणे से आई थी लेकिन बिट्टू ने तो अभी 6 दिन बाद आना था। बिट्टू की अनुपस्थिति में माधवी को भी अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि वह भी बिट्टू और भाभी से ही मिलने आई थी। उसका ख्याल था मां से तो वह कभी भी मिल सकती थी। पुणे से दिल्ली कोई ज्यादा दूर थोड़ी ना है हालांकि उसे दिल्ली आए हुए कितना समय हो गया था यह शांता जी ही समझ सकती है। माधवी के चेहरे से यह स्पष्ट हो रहा था कि उसका यहां आना व्यर्थ ही रहा। शांता जी माधवी से बोली "बिट्टू नहीं है तो क्या तू मुझसे मिलने नहीं आ सकती?"
" मां हमारी नौकरी में बहुत व्यस्त शेड्यूल है।" कुछ समय बाद माधवी और दामाद जी भी कैब ले कर शायद किसी माल में घूमने के लिए चले गए। शांता जी ने बच्चों के खाने के लिए बहुत सा सामान बनाया हुआ था लेकिन कोई कुछ खाना ही नहीं चाहता था। शांता जी ने बेहद निराश होकर वर्मा जी से पूछा सब व्यस्त हैं तो क्या मैं खाली हूं? रात को बहुत देर तक माधुरी और शांता जी बात तो करते रहे लेकिन बच्चों से मिलने के लिए उन्होंने जैसे सपने सजाए थे वह सब चूर-चूर से हो रहे थे। अगले दिन रात को माथवी पुनः वापस अपने घर चली गई।
कुछ दिन बाद जब बिट्टू आया तो शांता जी को महसूस हो रहा था जैसे कोई अनजाना परिवार घर में आ गया हो। वह लोग अपनी और बच्चों के लिए पानी की बोतलें भी अलग ही लाए थे। बच्चे मोबाइलों में व्यस्त थे। बिट्टू और बहुरानी भी काफी समय तक तो वह अपनी खरीदारी और दोस्तों से मिलने जुलने में ही व्यस्त रहे। बाकि के दिन भी पंख लगा कर यूं ही उड़ गए और बिट्टू के वापिस जाने का समय आ गया। शांता जी ने जब बिट्टू को उसकी पसंद के लड्डू बनाकर उसे अपने साथ दुबई में ले जाने का अनुरोध किया तो बिट्टू ने बताया कि पहले ही सामान बहुत ज्यादा हो गया है और अब वह लड्डू खाता भी नहीं है।
शांता जी चुप थी। उनका सारा घर यूं ही फैला छोड़कर बच्चे जा चुके थे। वर्मा जी शांता जी को उदास देख कर बोले "हम दोनों को तो शुगर है, तुम घर में कीर्तन करवा लेना और सबको प्रसाद के रूप में यह लड्डू वितरण कर देना। शांता परेशान मत हो! बच्चे व्यस्त हैं और अपना परिवार सही से चला रहे हैं हम दोनों के लिए तो इतना ही बहुत है हमने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर दिया।"
"लेकिन वर्मा जी हम कोई पंछी तो नहीं जो बच्चे बड़े होते ही उड़ जाए" ,शांता जी बोली।
"ऐसा कुछ नहीं है, तब अच्छा होता क्या जब हमारे बच्चे निकम्मे होकर हमारे साथ रहते होते?” तुम्हारी समस्या यह है कि तुम खाली ज्यादा हो। कल से तुम भी मेरे साथ दुकान पर आकर बैठ जाओ। मैं जल्दी ही दुकान में थोड़ी सी जगह बनाकर एक लेडीज कॉर्नर भी बना दूंगा।
इस नकारात्मक सोच में कुछ नहीं रखा व्यस्त रहो और मस्त रहो। भविष्य की तैयारी करनी है तो जितना हो सके तुम औरों के काम आओ ताकि किसी समय और लोग भी तुम्हारे काम आ सके।" तभी एअरपोर्ट से बच्चों की वीडियो काल आई। सब बातें करने लगे। पाठकगण जिंदगी अपनी गति से चल रही है। जिंदगी के हर पल को जी कर खुद को व्यस्त और स्वस्थ रखना ही जरुरी है।

********

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page