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शिकवा

प्रीती शुक्ला


कहा उसने के इश्क है तुमसे...

मगर दिल से कहा नहीं।

कह रहा था बस दूर से...

पास आया तो कुछ कहा नहीं।

कहा था उस से कि कहो...

राहे सफर में साथ कब तलक,

कहा तो ज़िंदगी भर है मगर...

मैं ही हूँ ज़िंदगी, ये कहा नहीं।

इस दिले दागदार में....

इतनी जगह कहाँ के पालूं इन्हें,

मेरी ये हसरतें करेगा पूरी...

उसने भी कभी कहा नहीं।

तेरे जैसा कोई और नहीं...

हो सकता लिख के भेजा है,,

मगर उसने आने के लिए....

खत में कुछ भी कहा नहीं।

दरबदर होने से पहले सम्हाले जाते...

तो बचा लेते वो हमें,

सारी दुनिया को किये इशारे....

मगर मुझसे कुछ कहा नही।

किसी ने पूछा तो पता प्रीत का....

उसकी गलियों का ही दिया,

ले जाएगा मांग सिंदूरी कर.....

ये अबतक उसने कहा नहीं।

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