top of page

श्राद्ध की चिन्ता

मुकुन्द लाल

आकाश में किरण फूटते-फूटते यह खबर गांव में फैल गई कि बूढ़े धनेशर की मृत्यु हो गई। उसके घर से रूदन-क्रंदन की आवाजें आ रही थी। उसके तीनों पुत्र और उसके शुभचिंतक अंतिम संस्कार की तैयारी में लगे हुए थे।
देखते-देखते अर्थी तैयार हो गई। तीन-चार घंटों के बाद लोग दाह-संस्कार करके श्मशान घाट से लौट आए। उस परिवार के अभिभावक का सहारा समाप्त होने का दुख तो तीनों पुत्रों के अंतर्मन में था ही लेकिन श्राद्ध की चिन्ता से उसका अवसाद दुगना हो गया था। उनकी आर्थिक स्थिति दशकों से खराब थी।
धनेशर को अपनी जर्जर हालत और खराब स्वास्थ्य के कारण आभास हो गया था कि वह इस धरती पर कुछ ही महीनों का मेहमान है। उसकी धर्मपत्नी भी उसे छोड़कर पांच वर्ष पहले ही इस दुनिया से विदा हो गई थी।
उसे मरने का गम नहीं था लेकिन वह बेहद चिन्तित था कि उसकी मौत के कारण होने वाले खर्चीले श्राद्ध में थोड़े से बचे हुए खेत बिक न जांय क्योंकि मात्र उन्हीं खेतों से उसके पुत्रों और उनके परिवारों की परवरिश होती थी।
उसने मरने के सप्ताह-भर पहले अपने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाकर समझाया था कि वे श्राद्ध के चलते खेत बेचने या गिरवी रखने की गलती भूलकर भी न करें। उसने चेतावनी देते हुए कहा था कि झूठी प्रतिष्ठा का प्रदर्शन करने में या किसी के बहकावे में आकर खेत बेच दिया तो उन लोगों का आशियाना उजड़ जाएगा। उसने यह भी सलाह दी कि रिश्तेदारों को भी बुलाने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें खबर दे देना ही काफी होगा।
दाह-संस्कार के उपरांत नियमानुसार निश्चित अवधि में ही दस-पाँच पंडितों को आमंत्रित करके वेलोग ब्रह्मभोज संपन्न कर लें।
उसकी आर्थिक कमजोरी जग-जाहिर थी। उसका फायदा उठाने के फिराक में गांव के संपन्न लोग उसके बड़े पुत्र रामसेवक के इर्द-गिर्द मंडराने लगे। उसके सामने घड़ियाली आंसू बहाने लगे। तरह-तरह के प्रलोभन देने लगे। धनेशर की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए श्राद्ध में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतने की उन्होंने सलाह दी। उनमें से एक-दो ने उधार रुपये देने की भी पेशकश की। किसी ने खेत बेचकर धूम-धाम से श्राद्ध संपन्न करके पितृ-ऋण से मुक्त होने की सलाह दी।
किन्तु रामसेवक ने अपने पिता के दिए गए निर्देशों का पालन करने का मन बना लिया था। इस नीति के तहत उनकी बातों को सुनकर भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। उसने मौन धारण कर लिया था। उसके दोनों छोटे भाइयों ने भी अपने बड़े भाई के रास्ते का अनुशरण किया।
मौन रहकर ही रामसेवक ने उनके हर प्रश्नों का जवाब दे दिया था।

******

1 view0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page