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सौदामिनी

विभा गुप्ता

मेरी सहेली सौदामिनी देखने में जितनी सुन्दर थी, स्वभाव में उतनी ही कड़क। कई बार वो मेरी रूम पार्टनर भी बनी। जब कभी भी मैं उसे बिना बताये उसकी कलम लेकर पुनः मेज पर रख देती थी तो वो तुरंत समझ लेती थी कि मैंने उनकी कलम को हाथ लगाया है। इतनी अनुशासनप्रिय सौदामिनी कि जब शादी ठीक हुई तो उसके माता-पिता चिंतित थें कि सौदामिनी का निबाह कैसे होगा। लेकिन कहते हैं ना कि ऊपर वाला जोड़ियाँ भी बहुत सोच-समझ कर बनाता है।
उसके पति महेश जी पूरे पत्नीभक्त थें। वो कह देती कि मेज पर गिलास ऐसे रखनी है तो वो वैसे ही रखते थें। उसके घर में काम करने वाले शंभू काका भी उतने ही आज्ञाकारी थे। सौदामिनी को जब बेटी हुई तब उसके माता-पिता को तसल्ली हुई कि चलो...लड़की बस गई।
पत्र में वह कभी-कभी अपनी बेटी की तस्वीर भी भेजती थी। उसकी बातों से इतना तो स्पष्ट होता था कि बेटी श्वेता ने रूप-रंग तो उसका लिया था लेकिन स्वभाव में वह अपनी माँ के बिल्कुल विपरीत थी। मोबाइल फ़ोन आया तो तब वह माँ-बेटी की नोंक-झोंक मुझे बताने लगी थी और तब मेरे अंदर की खुंदक जाग उठती थी। मन में कहती, बच्चू..अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे।
देखते-देखते उसकी बेटी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बन गई। एक दिन बेटी ने उसे अपना फ़ैसला सुना दिया, "मैं निकुंज से ही शादी करुँगी।" उसने समझाने की कोशिश की...महेश जी ने भी कहा कि थोड़ा समय ले लो...दो-तीन महीनों की जान-पहचान में भला किसी इंसान की पहचान कैसे हो सकती है? तब उसने जवाब दिया था, "आप मम्मा को दो घंटे की बातचीत पहचान गये थे और दो-तीन महीने में मैं निकुंज को नहीं पहचान सकती।" महेश जी निरुत्तर हो गये। फिर थी तो वह सौदामिनी की ही बेटी ना...जो निर्णय ले लिया सो ले लिया। बेटी के आगे माँ को झुकना ही पड़ा। उस समय वह अंदर से टूट-सी गयी थी। मुझे भी अच्छा नहीं लगा था। बस उसे इतना ही कहा, "सब वक्त पर छोड़ दो।"
विवाह के छह महीने बाद से ही श्वेता और निकुंज के बीच बहस होने लगी। वह माँ को कम बताती थी लेकिन जब वह सिर्फ़ 'ठीक है' कहती तो सौदामिनी समझ जाती थी कि कुछ भी ठीक नहीं है।
डेढ़ साल बाद जब श्वेता ने बताया कि वह माँ बनने वाली है तो सौदामिनी की खुशी का ठिकाना न रहा। काफ़ी दिनों बाद उसकी बातों में मुझे नई ऊर्जा महसूस हुई थी। श्वेता ने एक बेटे को जन्म दिया तब नानी बनने की खुशी में उसने एक पार्टी दी थी। मैं गई थी। खुशी उसके चेहरे पर दिख रही थी। उम्र हो गई थी लेकिन चेहरे पर तेज अब भी बरकरार था।
कुछ महीनों बाद अचानक श्वेता ने मुझे फ़ोन किया, "आंटी...मैं निकुंज से डिवोर्स ले रही हूँ...।"
"पर बेटा..एक बार..।"
"नहीं आंटी...लेक्चर मत देना...। आपको बताया कि मम्मी को आप संभाल लेना।" कहकर उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
मैं तो सन्न रह गई थी। सौदामिनी को फ़ोन किया...बहुत शांत थी। शायद खुद को समझा चुकी थी या फिर इस परिणाम का अंदेशा था उसे।
फिर एक दिन उसने मुझे बताया कि श्वेता का तलाक मिल गया है। आवाज़ में थोड़ी कंपन थी...इधर-उधर की बात करके उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
वैसे तो आज डिवोर्स होना आम बात हो गई हो लेकिन जिसके जीवन में होता है तो वो पहली बार ही होता है। आस-पास के लोग-रिश्तेदारों सवालों की बौछारें लगा देते हैं। ऐसे समय में भला मैं उसे अकेले कैसे छोड़ देती।
समय निकालकर एक दिन चली गई। श्वेता और उसके बेटे से मिली। शाम चार बजे के करीब दो महिलाएँ आईं...सौदामिनी से मिली, "भाभीजी..सुनकर बहुत बुरा लगा। आपको ना लड़के के बारे में पूरी छान-बीन कर लेनी चाहिए थी।"
दूसरी बोली," मुझे तो तभी खटका लग गया था। अजी...लड़की को भला क्या परख...खुद से लड़का पसंद करेगी तो....।" तभी उसकी मेड चाय ले आई तो उसने कहा, "चाय पीजिए।" सब शांत थे, अचानक सौदामिनी बोली, "आपने ठीक ही कहा कि लड़की को क्या परख...लेकिन सानिया मिर्ज़ा तो इंटरनेशनल प्लेयर है..उसे तो सब ज्ञान था फिर भी उसका तलाक हो गया। और तो और...पति ने दूसरी शादी भी कर ली। करिश्मा कपूर का तो पूरा खानदान ही समझदार था.. फिर उसकी शादी भी तो टाँय-टाँय फिस्स..हो गई। हमारी ड्रीम गर्ल ने तो देख-परखकर स्वयं दामाद पसंद किया था..लेकिन क्या हुआ...सब जानते हैं। अब मेरी बेटी से भी ज़रा-सी भूल हो गई तो क्या हुआ। कहते हुए उसने मुस्कुराकर अपनी बेटी की तरफ़ देखा। अपनी बेटी को जिस तरह से उसने डिफ़ेंड किया..ये देखकर चाय पीने वालों की तो ज़बान बंद हो गई और मेरे मुँह से हठात् निकल पड़ा "वाह सौदामिनी वाह!”

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