डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव
एक बार एक शिकारी शिकार करने एक जंगल में गया, दिनभर भटकने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिला, थकान हुई और एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया।
पवन का वेग अधिक था, तो वृक्ष की छाया, डालियों के यहाँ-वहाँ हिलने के कारण, कभी कम-ज्यादा हो रही थी।
वहीं से एक अतिसुन्दर हंस उड़कर जा रहा था, उस हंस ने देखा कि वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा हैं, धूप उसके मुँह पर आ रही हैं, जिसके कारण वो ठीक से सो नहीं पा रहा हैं। तो परोपकार की इच्छा से वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया, ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सो सके।
जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठा जिसपर हंस पहले से ही बैठा था। कौवे ने इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर दिया और वहाँ से उड़ गया।
तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा। उसकी नज़र पेड़ पर पंख फैलाए बैठे हंस पर पड़ी। क्रोध में आकर शिकारी ने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया।
हंस नीचे गिरा और मरते-मरते हंस ने कहा : मैं तो आपकी सेवा कर रहा था, मैं तो आपको छाँव दे रहा था, आपने मुझे ही मार दिया? इसमें मेरा क्या दोष?
उस समय शिकारी ने कहा : यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ, आपकी सोच आपके तन की तरह ही सुंदर हैं, आपके संस्कार शुद्ध हैं, यहाँ तक कि आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डाली पर बैठ मेरी सेवा कर रहे थे। लेकिन आपसे एक गलती हो गयी, कि जब आपके पास कौआ आकर बैठा तो आपको उसी समय उड़ जाना चाहिए था। उस दुष्ट कौए के साथ एक घड़ी की संगत ने ही आपको मृत्यु के द्वार पर पहुंचाया है।
सार: संसार में संगति का सदैव ध्यान रखना चाहिये। जो मन, कर्म और बुद्धि से परमहंस हैं, उन्हें कौओं की सभा से दूरी बनायें रखना चाहिये।
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