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संस्कार

रूप किशोर श्रीवास्तव

एक समय पर विजयगढ़ भारत का एक विशाल साम्राज्य था। वहां के राजा वीरेंद्र प्रताप सिंह बहुत ही दयालु प्रकृति के थे। उनके राज्य की प्रजा बहुत सुखी थी। राज्य में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। राजा समय-समय पर अपने दरबारियों के साथ नगर में विचरण करते थे और प्रजा की सुख, शांति और संपन्नता की पूर्ण जानकारी रखते थे, तथा आवश्यकता पड़ने पर यथोचित कार्यवाही भी करते थे।
एक दिन राजा अपने मुख्य दरबारियों के साथ नगर में घूम रहे थे। अचानक राजा की नज़र एक भिखारिन पर पड़ी। भिखारिन अत्यंत सुंदर थी, राजा उस भिखारिन के सौंदर्ये को देखते रह गए। यद्पि राजा वापस अपने महल मे लौट आए परंतु उस भिखारिन के सौंदर्ये को नहीं भुला सके। राजा वीरेंद्र प्रताप सिंह उस भिखारिन से इस कदर प्रभावित थे कि उसे देखने के लिए नित्य उस स्थान पर भ्रमण को जाने लगे।
अत्याधिक व्याकुलता के कारण एक दिन राजा ने अपने सेनापति को बुलाया और उस भिखारिन के प्रति अपने मन में उपजे उद्वेग को सेनापति को बताया। राजा ने सेनापति को अपना सबसे विश्वासपात्र सेवक मानकर उस भिखारिन से विवाह करने की इच्छा भी व्यक्त की।
राजा को कौन मना कर सकता था। व्यवस्था की गई और उस भिखारिन को राजा अपनी रानी के रूप में महल में ले आए। राजा बहुत प्रसन्न रहने लगे और उस नई महारानी के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करने लगे। राजा ने एक बात पर गौर किया कि महारानी जब खाना खाने राजा के साथ बैठती तो लगभग बिना कुछ खाये ही भोजन समाप्त कर देती। कई दिनों तक निरंतर यह देखकर राजा दुखी हुए कि बिना भोजन महारानी कैसे जिंदा रहेगी।
राजा ने राज वैध को बुलाया और रानी का स्वास्थ्य परीक्षण करने को कहा। राज वैध ने बताया कि महारानी जी निरंतर भोजन कर रही हैं और वह किसी प्रकार की कोई बीमारी से ग्रसित नहीं हैं।
राजा को अब और भी आश्चर्य हो गया। क्या राजमहल में रहते रानी खाना खाने बाहर जाती हैं या बाहर से मंगाती हैं। दूसरे दिन राजा ने अपने द्वारपालों को बुला कर पूछा कि महारानी जी महल से किसी समय बाहर जाती है या बाहर से कुछ म्ंगाती हैं। द्वारपालों ने बताया महारानी जब से आई हैं, कभी महल के बाहर गई ही नहीं और न ही किसी से कुछ मंगाया।
अब राजा का आश्चर्य और बढ़ गया। अंततः राजा को इस काम के लिए अपने गुप्तचरों का सहारा लेना पड़ा। राजा ने गुप्तचरों को महारानी पर 24 घंटे गुप्त रूप से नज़र रखने को कहा। रात्रि के समय जब रानी, राजा के साथ भोजन के उपरांत अपने कमरे मे आई तो उन पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर पहले से ही कमरे में छिप गया। फिर जो द्र्श्य उसने देखा उससे वह अचंभित रह गया।
महारानी भोजन कक्ष से भोजन का एक थाल छुपा कर अपने महल में ले आई थी। थाल में छुपा कर लाए भोजन के थोड़े-थोड़े हिस्से को उसने अपने शयनकक्ष के अलग-अलग स्थानों पर रख दिया। फिर महारानी भिखारिन का रूप रखकर भोजन रखें स्थान पर जाती और भीख मांगती। भीख मांगने के बाद उस स्थान पर रखें भोजन को ग्रहण कर लेती थी। अगले दिन गुप्तचर ने सारी बात राजा को बता दी। राजा आश्चर्य चकित हो गए।
अगले दिन राजा ने पूरी घटना विस्तार से अपने राजगुरु को बतलाई और इसका कारण पूछा। राजगुरु ने बताया महाराज मनुष्य अपने संस्कारों से आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। उसके संस्कार लंबे समय तक उसका पीछा करते हैं। क्योंकि महारानी पिछले कई वर्षों से एक भिखारिन के रूप में भिक्षा ग्रहण करके अपना जीवन यापन कर रही थी। इस कारण भिक्षावृत्ति उनके संस्कारों में समाहित हो गई और महारानी को भिक्षा मांग कर भोजन ग्रहण करने में अधिक सुख का अनुभव होता।
हमारे छोटे-छोटे कर्म जो हम अपने जीवन में सामान्य रूप से करते हैं वही धीरे-धीरे हमारी आदत बन जाते हैं। कालांतर में वही संस्कार बन जाते हैं। अतः मनुष्य को समय-समय पर अपने भीतर उपजी आदतों, कर्मों और व्यवहार का परीक्षण अवश्य करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि हमारी कोई बुरी आदत या बुरा गुण धीरे-धीरे इतना विस्तारित हो जाए कि वह हमारा संस्कार बन जाए।

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