top of page

सच की राह

मधु मधुमन

 

ख़ामियाँ ही न गिनवाइए
कुछ तो अच्छा भी बतलाइए
चाहे कितनी भी हो मुश्किलें
राह सच की ही अपनाइए
जब किया ही नहीं कुछ ग़लत
क्यूँ किसी से भी घबराइए
ज़ख़्म ही ज़ख़्म जिसने दिए
वो ख़ता फिर न दोहराइए
जिनकी ताबीर मुमकिन न हो
ख़्वाब ऐसे न दिखलाइए
सबसे मिलिए भले ही मगर
ख़ुद को ख़ुद से भी मिलवाइए
लड़ झगड़ कर मिलेगा न हल
प्यार से बात सुलझाइए
वो न होगा कभी टस से मस
चाहे कितना भी समझाइए
जिसको मतलब है बस काम से
उसकी बातों में मत आइए
कोई सुनता नहीं गर तो क्या
दर्द ग़ज़लों में कह जाइए
दूर ‘मधुमन‘ है कब आसमाँ
पंख तो आप फैलाइए।

******

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comentarios


bottom of page