अंजलि
मोल भाव इश्क में क्या करते हो जानां
नाज़ुक सा दिल मेरा कोई बाजार नहीं है।
मरमर से बदन पे, फिसले हैं निगाहें
दिल ए बर्बाद का अब कोई खरीदार नहीं है।
ख्वाब सा चमका था कभी नीम स्याह आंखों में
अब है खिज्र का आलम, गुल ऐ बहार नहीं है
बिकते हैं नकली चेहरे मुँहमाँगी कीमतों पर
अब सच्चे आईनों के तलबगार नहीं हैं।
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