विभा गुप्ता
"सॉरी दीदी, आज घर में कुछ काम आ गया तो पैसे उसी में खर्च हो गये। कल पक्का आपका सारा बकाया मैं चुकता कर दूँगा।" हाथ जोड़कर नवीन बोला तो राधा उसे घूरकर देखने लगी। उसके जाने के बाद वह बुदबुदाई, "पक्का जुए में पैसे उड़ा दिये होंगे और मुझसे घर का बहाना कर रहा है। उधार का खाने में ज़रा भी शर्म नहीं आती और चुकाने में नानी मरती है इनकी।"
राधा एक छोटा-सा कैफ़े चलाती थी। चाय-बिस्कुट, नमकीन के साथ-साथ वह केक-बन भी रखती थी। वैसे तो उसने अपने कैफ़े के मुख्य दरवाज़े पर लिख रखा था- no credit, फिर भी उसका दिल नहीं मानता और वह सौ-पचास रुपये तक का उधार अपने खाते में लिख लेती है। उधार लेने वाला भी दो-तीन दिनों में उसके पैसे चुकते कर देता था। लेकिन पिछले महीने नवीन उसके कैफ़े से पाँच सौ रुपये का सामान उधार ले गया था। जब भी आता तो कहता कि दीदी, कल दे दूँगा पर उसका कल कभी आता ही नहीं। एक महीना हो गया, आज भी आया तो कल पर टाल कर चला गया।
माँ दुर्गा की भक्त राधा ने नवरात्रि का व्रत कर रखा था। भूखे पेट में उसका गुस्सा दोहरा हो गया था। काम करते हुए भी वह दिनभर कुढ़ती रही। शाम को घर जाकर उसने देवी माँ के आगे दीया जलाया और चाय पीकर वह आरामकुर्सी पर आँखें मूँदकर सोचने लगी। हम पूजा-व्रत अपने मन की शांति के लिए करते हैं लेकिन मैं तो आज पूरे दिन कुढ़ती रही, नवीन पर झल्लाती रही। हो सकता है कि नवीन सच बोल रहा हो, पैसा तो हाथ का मैल है। यह जानते हुए भी मैं देवी माँ का ध्यान न करके पूरा दिन क्रोध, द्वेष और क्लेष की अग्नि में जलती रही। दादी कहा करतीं थीं कि व्रत करने का उद्देश्य सिर्फ़ सात्विक भोजन करना ही नहीं है बल्कि अपने अहंकार, गुस्से और ईर्ष्या की भावनाओं पर नियंत्रण करना भी है। मोह-माया का त्याग करना ही तो सच्ची पूजा है। जब मन को सुकून ही न मिले तो मेरी पूजा व्यर्थ है। हे देवी माँ! ये मुझसे क्या अनर्थ हो गया। मुझे क्षमा करना...., और उसका मन शांत हो गया। वह सुकून की नींद सोई।
अगले दिन जैसे ही उसने अपना कैफ़े खोला, नवीन आ गया, उसके हाथ में रुपये देते हुए बोला, "दीदी, ये लीजिए, पूरे पैसे हैं, गिन लीजिये। कल बाबूजी को अस्पताल ले जाना था, इसलिए ...।"
"अरे, कोई बात नहीं।" मुस्कुराते हुए उसने कहा। सच में, ये छोटा-सा वाक्य मन की सारी व्याधियों को दूर कर देता है।
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