"दादी मां, हर किसी के जन्म के पीछे विधाता कोई न कोई ध्येय निश्चित किए रहता है? क्या यह बात सच है?" किशोर वया विधि अपनी दादी मीना की गोद में सिर रखे हुए आकाश में तारों को देखते हुए बोली।
"हां, बेटा हर आदमी के जन्म के पीछे विधाता का एक निश्चित ध्येय होता है पर अपने जन्म का ध्येय बहुत कम लोग ही पूरा करने में सफल हो पाते हैं।" विधि के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए मीना ने कहा।
"ऐसा क्यों दादी मां? हर किसी का ध्येय क्यों नहीं पूरा होता? मम्मी-पापा का तो पूरा हुआ है न? यूएसए में सेट हो गए हैं?"
"नहीं बेटा। एक सफल कैरियर से ही जीवन का ध्येय पूरा नहीं हो जाता है। मनुष्य मॉं के शरीर से भले ही एक ही बार पैदा होता है पर इस दुनिया में जन्म लेने के साथ ही समय-समय पर उसके दूसरे तमाम जन्म होते हैं, जैसे- जिम्मेदारियां, चिंताएं, सपने के साथ रोज़ाना नित नए विचार और संबंध तक जन्म लेते हैं। इन सब के बीच संतुलन बनाने में आदमी को कभी पता ही नहीं चल पिता कि उसका जन्म क्यों हुआ है?"
"इतने अधिक जन्म और वो भी एक ही जन्म में!" नन्हीं विधि को दादी की गूढ़ बातें भला कैसे समझ में आती? जिम्मेदारियों व चिंता के बारे में तो उसे कुछ पता नहीं था पर वह सपनों के बारे में थोड़ा-थोड़ा समझने लगी थी क्योंकि अब वह स्कूल की पढ़ाई पूरी कर कालेज जाने वाली थी। अत: वह बोली "दादी, आपने भी तो कोई सपना देखा होगा न?"
विधि की बात सुनकर मीना अतीत में खो गयी। बोली "मैं अपनी बात करूं बेटा तो जब मेरा जन्म हुआ तो बेटी पैदा हुई है यह जानकर घर में सभी का मुंह लटक गया। पहला बच्चा, वह भी बेटी! किसी के चेहरे पर मेरे जन्म की कोई खुशी नहीं थी। यह वो दौर था जब दहेज के डर से बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता था, पर मैं शायद थोड़ी किस्मत वाली थी....मेरे जन्म के कुछ सालों बाद मेरे भाई का जन्म हुआ। भाई के जन्म के साथ बड़ी बहन के रूप में मेरा एक और जन्म हुआ। बड़ी बहन होने की वजह से मुझे अपने छोटे भाई को मां की तरह ही संभालना पड़ा, जिससे मुझमें सोचने-विचारने की क्षमता विकसित हुई। मैं जैसे-जैसे बड़ी हुई, विचारों और सपनों ने जन्म लेना शुरू किया था पर इससे पहले कि मेरे सपने पूरे हो पाते, मेरी शादी कर दी गयी और फिर एक पत्नी के रूप में मेरा एक और जन्म हुआ।