लक्ष्मी कुमावत
मीनल अभी तक बाजार से घर नहीं लौटी थी। शाम के 6:00 बजने को आ चुके थे। ममता जी बार-बार घर के बाहर आकर देख रही थी। सुबह 10:00 की मार्केट गई हुई है लेकिन अभी तक उसका कोई अता-पता नहीं था। कई बार फोन भी ट्राई कर लिए लेकिन फोन उठाए तब ना।
मीनल ममता जी की बहू है। अभी तीन महीने पहले ही उनके इकलौते बेटे तरुण के साथ शादी होकर इस घर में आई है। पर बहू जैसी कोई बात नहीं है उसमें। हर बात में अपनी ही चलाती है।
जब ममता जी अपने पति महेश जी के साथ उसे देखने गई थी तो उसकी मम्मी ने उसकी तारीफों के बड़े पुल बांधे थे। मम्मी पापा के अलावा उसके दो बड़े भाई और भाभी है। भरे पूरे परिवार को देखकर उन्होंने ये सोचकर हां कर दी कि लड़की परिवार में ही रही है तो संस्कारी तो होगी ही। पर कहते हैं ना ऊंची दुकान फीके पकवान। ठीक वैसा ही हाल मीनल का निकला।
जैसे सब कहते हैं कि हम तो बहू को बेटी बनाकर रखेंगे। ठीक वैसे ही ममता जी ने भी मीनल के लिए कहा था। लेकिन बेटी बना कर रखना और बेटी होने में फर्क होता है। इस महीन रेखा को मीनल नहीं समझ पाई। शादी के बाद उसने बहू जैसे कोई लक्षण नहीं दिखाएं।
घर में शॉर्ट्स पहन कर घूमना, जब चाहे पार्टी करना, किसी भी समय बाहर से खाना ऑर्डर कर लेना, घर के काम न करना और सबसे बड़ी बात ममता जी से छोटी-छोटी बातों पर बहस कर लेना। ये उसके लिए बहुत ही साधारण सी बात थी।
अगर ममता जी समझाती भी तो मीनल बात को हमेशा उल्टा ही लेकर जाती, "मैं तो आपकी बहू हूं ना। इसलिए मेरे साथ हमेशा ऐसा व्यवहार होता है। क्या आप अपनी सगी बेटी को इतना रोकती टोकती। जब मुझे देखने आई थी तभी कह देना चाहिए था कि हम तुझे बेटी बनाकर नहीं रखेंगे"
ममता जी घर की शांति के लिए चुप रह जाती। महेश जी से बोलती तो महेश जी भी ममता जी को ही समझाते, "अरे अभी बच्ची है। कुछ दिनों में समझ जाएगी। तुम थोड़ा सब्र करो"
तरुण से कुछ कहती तो तरुण कहता, "मम्मी आपके जमाने में और आज के जमाने में बहुत फर्क है। पहले बहुएं सिर्फ बहुएं होती थी, पर आजकल बेटियां होती है। थोड़ा वक्त दो वो सब समझ जाएगी"
आखिर जब पति और बेटा ही कह रहे हैं तो ममता जी उसके आगे कुछ कह ही नहीं पाती।
पर आज तो हद ही हो गई। सुबह तरुण और महेश जी के ऑफिस जाने के बाद से ही मीनल गई हुई है, लेकिन अभी तक नहीं आई। ममता जी फोन कर रही है तो फोन भी उठा नहीं रही है।
'भला ये कोई बहू बेटी के लक्षण है। आने दो उसे आज। आज तो साफ-साफ बात करूंगी' ममता जी बड़बडाने लगी। इतने में तरुण और महेश जी भी घर आ गए। आते ही महेश जी बोले, "अरे क्या हो गया श्रीमती जी? घर के बाहर खड़ी होकर किसका इंतजार कर रही हो? हमारा तो आज तक इस तरह से इंतजार नहीं किया। कौन खुश नसीब है वो।"
महेश जी के सवाल को सुनकर ममता जी उन्हें घूरते हुए बोली, "आपको मजाक सूझ रहा है। यहाँ शाम हो चुकी है लेकिन बहू अभी तक घर पर नहीं आई। पता नहीं कहां रह गई। कह कर तो गई थी कि थोड़ी देर में आती हूं।"
"अरे तो कोई काम हो गया होगा। मम्मी आप भी क्या चिंता करती हो। कोई छोटी बच्ची थोड़ी ना है। आ जाएगी" तरुण ने बीच में ही कहा।
"आ जाएगी से क्या मतलब? आजकल जमाना कितना खराब है, पता नहीं है क्या। कब से फोन लगा रही हूँ। कम से कम फोन तो उठा कर जवाब दे सकती है। भला ये कोई बहू बेटी के लक्षण होते हैं।" तरुण की बात सुनकर ममता जी खींझते हुए बोली।
"अच्छा अच्छा! तुम दोनों मां बेटे बात करो। मैं जाकर चेंज कर रहा हूं और थोड़ी देर आराम करूंगा। फिर सब लोग मिलकर खाना खाएंगे। खाना तो बना लिया होगा आपने श्रीमती जी?" महेश जी की बात सुनकर ममता जी बोली, "हां हां, सब्जी और दाल बना दी है। बस रोटियां सेकनी है।"
इतने में बाहर कैब आकर रुकी। उसमें से मीनल उतरकर आई तो उसके हाथ में काफी सारे शॉपिंग बैग्स थे। अंदर आते ही बैग्स एक तरफ पटक कर सोफे पर बैठते हुए बोली, "आज तो सचमुच बहुत थक गई हूं। पर शॉपिंग करके मजा आ गया।"
"बहु तुम इतना सब कुछ क्या लेकर आई हो" ममता जी ने बैग्स की तरफ देखते हुए कहा।
"कुछ नहीं मम्मी जी, मेरी जरूरत का सामान है। मैं अपने लिए सेल में से खूब अच्छी-अच्छी साड़ियां लेकर आई हूं। कुछ मेकअप का सामान है और डेली यूज के कपड़े लाई हूं।" मीनल ने ममता जी को जवाब दिया।
"पर तुम्हारी शादी तो अभी तीन महीने पहले ही तो हुई है। अभी तो कई सारे कपड़े ऐसे है जो तुमने पहने भी नहीं है। फिर और शॉपिंग करने की क्या जरूरत थी। और मैं तुम्हें कब से फोन लगा रही हूं। तुम फोन उठा कर जवाब तक नहीं दे रही हो मुझे। भला ये कोई बात होती है। मुझे चिंता हो रही थी" ममता जी ने कहा।
"मम्मी जी मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं। शॉपिंग करने ही तो गई थी, लौट कर आ ही जाती ना। जो आप बार-बार फोन पर फोन कर रहे थे। कितना एंबेरेस लग रहा था मुझे अपने दोस्तों के सामने। इसलिए मैंने फोन का वॉल्यूम ही बंद कर दिया। और रही बात शॉपिंग की तो मुझे जिन चीजों की जरूरत थी मैं वो ले आई। इसमें बात का बतंगढ़ बनाने की क्या जरूरत पड़ गई। मेरी मम्मी ने तो मुझे कभी नहीं रोका" मीनल ने बिगड़ते हुए कहा।
"बेटा तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें कभी रोका नहीं क्योंकि वो तुम्हारा मायका था। वहाँ तुम बेफिक्र होकर रहती थी। जी किया तो काम किया नहीं तो छोड़ दिया। दो दो भाभियाँ थी, संभाल लिया था उन्होंने। पर ये तो तुम्हारा ससुराल है। तुम खुद यहां एक बहू हो, वो भी इकलौती। इस घर का भला बुरा सब तुम्हें सोचना है। आखिर अपनी जिम्मेदारियां कब उठाओगी?"
ममता जी ने मीनल की बात का जवाब दिया। तब मीनल चिड़ते हुए बोली, "मम्मी जी फिर तो आपको शादी से पहले बोलना ही नहीं चाहिए था कि हम बहू को बेटी बनाकर रखेंगे। इतनी रोक-टोक तो कभी मुझ पर मेरी मम्मी ने भी नहीं की, जितना आप टोकती हैं।" कहकर मीनल कमरे में चली गई। ममता जी ने उदास होकर तरुण की तरफ देखा। तो तरुण उल्टा ममता जी को समझाने लगा, "क्या मम्मी, आप भी चिल करो ना। क्यों सास बन रही हो। सात ही तो बजे है। आ तो गई टाइम से। आपकी बेटी होती तो क्या आप उसके साथ भी इस तरह से बिहेव करते हैं।" कहकर तरुण भी अपने कमरे में चलता बना।
ममता जी को बहुत बुरा लगा। उदास मन से ममता जी कमरे में आ गई और पलंग पर बैठ गई। उन्हें इस तरह उदास देखकर महेश जी बोले, "ममता तुम्हें नहीं लगता कि तुम मीनल के सास बनने की कोशिश कर रही हो? अभी बाहर जो भी हुआ, उसमें तुम्हारा हाथ है। अच्छी खासी घर में शांति थी। बेवजह तुमने हंगामा कर दिया।"
उनकी बात सुनकर ममता जी बोली, "आपको भी लगता है कि मेरी ही गलती है। बहू का यूँ लेट तक आना, मेरा फोन ना उठाना, घर की कोई जिम्मेदारी ना लेना, ये गलत नहीं है।"
"अरे, तुम छोटी सी बात को क्यों बड़ा बना रही हो। अगर उसे बेटी की तरह मानोगी तो खुश रहोगी। अब तुम्हारी अपनी बेटी होती तो.. " कहते-कहते महेश जी चुप हो गए।
पर ये बात ममता जी के दिल पर जा लगी। उन्होंने कहा तो कुछ भी नहीं पर अपना मोबाइल लेकर बाहर बरामदे में आ गई। घुटन महसूस हो रही थी इसलिए अपनी एक सहेली अनु को फोन लगा दिया। और बातों ही बातों में मिनाल के बारे में बता दिया। तब अनु ने कहा, "देख ममता, बहु और बेटी के बीच में फर्क तो होता है। यह बात मीनल को समझना ही पड़ेगी। और रही बात महेश जी और तरुण की। तो जब तक इंसान को पका पकाया मिलता रहेगा, तब तक वो हाथ पैर क्यों चलाएगा। महेश जी और तरुण के सारे काम तो तू कर देती है। इसलिए उन लोगों को क्या फर्क पड़ेगा कि मीनल घर का काम करती है या नहीं। अपनी जिम्मेदारियां को समझती है या नहीं। तुझे खुद ही कोई कदम उठाना पड़ेगा। तभी तू खुद की मदद कर सकती है।"
अनु की बात धीरे-धीरे ममता जी को समझ में आने लगी थी। उन्होंने फोन कट करने के बाद कैब बुक की और अपने कमरे में आ गई। अपने कमरे में आकर अपना सामान एक बैग में पैक करने लगी। उन्हें सामान पैक करते देखकर महेश जी ने कहा, "तुम सामान क्यों पैक कर रही हो? कहीं जा रही हो क्या?"
"हां, मैं अपने मायके जा रही हूं। भाई कितने दिनों से बुला रहा था। सोचा कुछ दिन वही रहकर आऊंगी।" उनकी बात सुनकर महेश जी हैरान होते हुए बोले, "अरे! अचानक मायके जाने की क्या लगी तुम्हें? और अभी तक तो हमने खाना भी नहीं खाया। रोटियां कौन सेकेगा?"
"अरे! आपकी लाडली बेटी है ना। उससे बोलो। अब क्या हमेशा जिम्मेदारी मैं ही निभाती रहूंगी।"
"ओह! तो लगता है बात का बुरा लग गया। इसलिए अब ये तमाशा कर रही हो"
"इसमें तमाशे की क्या बात है? अभी मैं अपने मायके जाती तो क्या मेरी बेटी मुझे मायके जाने से रोकती। वही तो पीछे से पूरा घर संभालती"
"अब तुम बेवजह की बातें कर रही हो। तुम... "
लेकिन ममता जी ने महेश जी की बात को पूरा होने ही नहीं दिया। वो चुपचाप अपना बैग लेकर बाहर आ गई। तब तक कैब भी आ चुकी थी। इतने में तरुण और मीनल भी बाहर आए। तरुण ने आते हुए कहा, "मम्मी खाना बन ...."
ममता जी को बैग के साथ देखकर तरुण ने बात को पलटकर पूछा, "आप कही जा रही हो?"
"हां मैं कुछ दिन तुम्हारे मामा के घर रहने जा रही हूं। बहुत दिन हो गये मुझे मायके गए हुए। इसलिए सोचा थोड़ा चेंज हो जाएगा।"
कहकर ममता जी बिना किसी की बात सुने ही वहाँ से रवाना हो गई। ममता जी के इस कदम से सब हक्के बक्के रह गए। लेकिन भूख तो जोरो से लगी ही थी। तरुण ने मीनल की तरफ देखकर कहा, "अब खाना?"
"अरे! मैं भी थक गई हूं।" मीनल ने धीरे से कहा। लेकिन तब तक महेश जी ने बाहर आते हुए कहा, "तो मीनल बेटा, आज तुम खाना खिला दो। वैसे भी तुम्हारी मम्मी सब कुछ तैयार करके ही गई है। तुम्हें सिर्फ रोटियां ही सेकनी है।"
मीनल महेश जी से कुछ कह ना पाई और तरुण को घूरती हुई रसोई में आ गई। रोटियां सेक कर सबको खाना खिलाया और फिर खुद खाना खाकर अपने कमरे में जाकर सो गई। यहां तक कि ना रसोई साफ की और ना ही बर्तन धोए।
दूसरे दिन सुबह के 8:00 बज गए। लेकिन किसी की नींद तक नहीं खुली। अचानक तरुण हड़बढाकर उठा। और मीनल को जगाते हुए बोला, "मीनल जल्दी उठो। सुबह के 8:00 बज चुके हैं। आज तो बहुत देर हो गई। अब तो ऑफिस के लिए पक्का लेट हो जाऊंगा। पता नहीं पापा भी उठे हैं या नहीं। तुम फटाफट चाय नाश्ता बनाओ।" कहकर तरुण अपने पापा के कमरे की तरफ भागा। तब तक मीनल भी चिड़चिड़ा कर उठी, "क्या तमाशा है ये? मम्मी जी को भी मायके जाना जरूरी था क्या? बुढ़ापे में भी मायके का शौक नहीं गया। नींद खराब हो गई मेरी। अब रसोई में घुसकर नाश्ता और बनाओ।"
तरुण ने कमरे में जाकर देखा तो महेश जी भी अभी तक सो रहे थे। उसने उन्हें भी उठाया और फटाफट तैयार होने को कहा।
इधर मीनल रसोई में गई तो रसोई रात की ही बिखरी पड़ी थी। बर्तन झूठे पड़े हुए थे। उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या बनाऊं। इतने में तरुण रसोई में आया और बोला, "मीनल कमलाबाई का फोन आया था। वो आज भी नहीं आएगी इसलिए घर के साफ-सफाई भी तुम्हें ही देखनी है।"
"तरुण मैं ये सब कैसे करूंगी। रसोई बिखरी पड़ी है। रात के झूठे बर्तन पड़े हुए हैं। ऊपर से तुम कह रहे हो कमलाबाई भी नहीं आएगी। पिछले तीन दिन से वो छुट्टी ले रही है। और कितनी छुट्टी लेगी? मुझसे नहीं होगा ये सब। या तो तुम यहां रुक कर मेरी मदद करो वरना मैं भी अपने मायके चली जाऊंगी।"
मीनल चिड़चिड़ाते से बोली। उसकी बात सुनकर तरुण एक पल के लिए बिल्कुल चुप हो गया। और फिर बोला, "मीनल मम्मी भी तो ये सब अकेले संभालती थी। तुम तो कभी उनकी मदद भी नहीं करवाती थी।"
"मुझे नहीं पता ये सब। तुम्हारी मम्मी ने ये सब जानबूझकर किया है मुझे परेशान करने के लिए। मैं अपने मायके जा रही हूं। तुम देख लो तुम्हें क्या करना है।"
मीनल बड़बड़ाते हुई अपने कमरे में चली गई। उसकी ये बात महेश जी ने भी सुन ली। वाकई उन्हें काफी हैरानी हुई कि बहू एक दिन घर नहीं संभाल पा रही जबकि वो और तरूण उसी का साथ देते थे।
तभी महेश जी तरुण से बोले, "बेटा मैं ऑफिस जा रहा हूं। चाय नाश्ता वही कर लूंगा। आज तुम घर पर रहकर मीनल की मदद करवा दो।" कहकर महेश जी घर से बिना चाय नाश्ता किए ही रवाना हो गए। इधर मीनल ने अपनी मम्मी को फोन लगाया ये बताने के लिए कि वो मायके आ रही है तो उसकी मम्मी ने पूछा, "आज अचानक कैसे मायके आ रही है? सब ठीक तो है?"
"यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी। मेरी सास तो रुठकर मायके जाकर बैठ गई। पता नहीं लोग शादी से पहले ऐसा क्यों कहते हैं कि हम तो बहू को बेटी बना कर रखेंगे। सच, बोलने में और करने में बहुत फर्क होता है।"
बड़बड़ाती हुई मीनल ने कल का पूरा किस्सा अपनी मम्मी को कह सुनाया। उसकी बात सुनकर उसकी मम्मी ने कहा, "अच्छा! तो तू काम के डर से भाग कर आ रही है। तुझे तो मेरे जैसे सास मिलनी चाहिए थी जो बहूओं को डांट डपटकर एक तरफ बिठाकर रखती है। खबरदार! जो तू मेरे घर आई तो। तेरी बात सुन-सुन कर मेरी बहुएं बिगड़ जाएगी। और मेरे सिर पर चढ़कर नाचेगी।"
"मम्मी आप मुझे मेरे ही मायके आने से रोक रही हो" मीनल हैरान होते हुए बोली।
"क्यों ना रोकूँ तुझे। अपना घर संभाल नहीं पा रही है। और मेरे घर में आग लगा देगी। इज्जत से आए तो तेरा स्वागत है। लेकिन इस तरह से लड़ झगड़ कर आई तो मेरे घर के दरवाजे तेरे लिए बंद हैं।" कहकर उसकी मम्मी ने फोन रख दिया।
मीनल हैरान रह गई कि उसकी मम्मी उसे ये जवाब दे रही थी। अब तो मजबूरन उसे घर का काम करना ही था, इसलिए रसोई में पहुंच गई। मीनल को काम करता देखकर तरुण की भी जान में जान आई और वो भी घर की साफ सफाई में उसकी मदद करने लगा। दोनों ने मिलकर ही घर का काम किया था लेकिन उसमें ही दोनों थक गए। इसलिए दोपहर में खाना दोनों ने बाहर से मंगवाया।
लेकिन शाम आते आते तक सबको अपनी गलती का एहसास हो चुका था। इसलिए महेश जी आते समय ममता जी को मनाकर अपने साथ ही लेकर आए। ममता जी के घर आते ही मीनल और तरुण ने भी उनसे माफी मांगी।
आखिर धीरे-धीरे सब कुछ नॉर्मल हो गया यह तो कहानी थी इसलिए आसानी से सब कुछ नॉर्मल हो गया। पर सच्चाई तो इससे काफी परे होती है।
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