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सुखांत

राजश्री जैन

प्रकाश जी की पत्नी प्रिया जी का देहांत हो गया था और अब वो बिल्कुल अकेले रह गए थे। उनका बेटा और बेटी दोनों अपने परिवार सहित आये थे।
प्रकाश जी के मित्रों ने उन्हें समझाया कि बच्चों से बात करो कि तुम अकेले कैसे रहोगे। अभी तो तुम्हारी तबियत ठीक है। छोटी-मोटी समस्याएं आती रहती हैं लेकिन अगर ज्यादा बीमार हो गए तो कैसे, क्या करोगे।
उन्हें सुझाव उचित लगा और सोचा कि एक बार बात करके तो देखें बाद में तो सिर्फ फोन पर ही बात होगी। उन्होंने विकल्प सोचना शुरू किया।
उन्होंने बेटे और बेटी से कहा कि मैंने सोचा है कि अगर मेरी तबियत ज्यादा ख़राब हो जाये तो मुझे अकेले रहने में मुश्किल हो जाएगी। तुम दोनों के पास कोई सुझाव हो तो बताओ। वे दोनों बच्चों कि नियत भी परखना चाहते थे। साथ ही साथ भली-भांति यह भी जानते थे कि दोनों अपनी नौकरी अलग शहरों में कर रहे हैं और अच्छी नियत होते हुए भी शायद कुछ न कर पाएं। देखते है क्या कहते हैं दोनों बच्चे।
उन्होंने कहा कि या तो मैं तुम दोनों में से किसी एक के साथ रह सकता हूँ या तुम दोनों में से कोई मेरे साथ आ कर रह सकता है। तुम दोनों विचार-विमर्श कर लो कि सुविधानुसार कौन क्या कर सकता है और बताओ। इस उम्र में जो मेरी देखभाल करेगा, अपना बसा बसाया घर मैं उसके नाम कर दूंगा। दूसरे बच्चे को भी मैं कुछ तो जरूर दूंगा लेकिन जो मेरा करेगा उसे घर और कुछ धन अवश्य दूंगा।
अब बच्चों की बारी थी। बेटी भाड़े के घर में रह रही थी। बहुत छोटा घर था और उसके बच्चे भी अभी छोटे थे। तो निश्चित हुआ कि वो पापा के साथ रहेगी। बेटे ने भी सहर्ष स्वीकृति दी थी। दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम और सहयोग था एक दूसरे के लिए।
सही समाधान निकल आया पापा और बेटी दोनों को एक दूसरे का साथ मिल गया तो सब निश्चिन्त हो गए। बेटे ने कहा कि अब मुझे भी तसल्ली रहेगी कि तुम सब एक दूसरे का सहयोग कर सकोगे।

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