डॉ. विभा कुमारी सिंह
"खरोंची हुई पीठ छुपाने के लिए बंद गले की ब्लाउज पहनती हो और कहती हो कि खुले गले पसंद नहीं।" शारदा ने अपनी देवरानी अमिता से हर शब्द को चबाते हुए बोली। उसकी आँखों में नफ़रत साफ दिखाई दे रही थी। कम उम्र में ब्याह कर दिया गया था, स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाई थी। पर अपनी बुद्धिमत्ता के सामने किसी को नहीं समझती थी। जल्दी शादी हुई, जल्दी बच्चे हो गये, उनके बच्चे बड़े हो गये।
घर के काम खत्म करके तीनों बहूएँ एक साथ बैठ बातें कर रही थी। शारदा बड़ी थी, रंग से गोरी पर व्यवहार से कड़वी। उसकी बातें दिल को चीर कर निकल जाती थी।
अमिता मंझली और शोभना छोटी थी। दोनों घर के काम में निपुण, व्यवहार से बहुत मधुर थी। सभी रिश्तों को निभाती, सास ससुर का खूब ख्याल रखती थी।
दोनों अपनी जेठानी की कड़वी बातों को भी मुस्कुरा कर चुपचाप सुन लेती। शोभना पाक कला में निपुण थी, रसोई के काम को खुशी-खुशी करती थी। खिलखिला कर हँसना उसकी एक खासियत थी, जिससे पूरा घर जगमगाता रहता था।
अमिता पढ़ी लिखी संभ्रांत परिवार की बेटी थी, चेहरे पे मधुर मुस्कान सदा सुशोभित रहती।
अमिता जब गर्भवती थी, उसके पूरे शरीर पर खुजली होने के कारण निशान पड़ गया था, उसका ताना उसे गाहे बगाहे सुनना पड़ता। शिक्षिका होने के कारण वो हमेशा शालीन कपड़े पहनती। बंद गले की ब्लाउज, हल्के रंग की साड़ी, कम और हल्के गहने, दो चार चूड़ियाँ, श्रृंगार के नाम पर सिंदूर और बिंदी।
आज फिर उसकी जेठानी ने खुले गले, बिना बाजू की ब्लाउज पहनी थी। अमिता की कमी को इंगित करती हुई कड़वा बोल गई।
अमिता ने मुस्कुरा कर कहा कि "जब ये निशान नहीं थे, उस समय भी मैं बंद गले की कुर्ता पहनती थी।
निशान मेरे शरीर पर है, मन एकदम साफ है। असली खूबसूरती तन की नहीं मन की होती है।" अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए, मधुर मुस्कान के साथ आदर से बोली, "सुंदर तन आँखों को सुख देती है और सुन्दर मन, सुंदर व्यवहार आत्मा को सुखी करते हैं। शरीर की सुन्दरता उम्र के साथ कम होती है और मन की सुन्दरता उम्र के साथ बढ़ती जाती है।"
शोभना दोनों की बातों को सुनकर मंद मंद मुस्करा रही थी। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो अमिता की बात से सहमत थी।
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