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सेवा का फल

शिवकुमार गोयल

हजरत मूसा हर पल खुदा की याद में डूबे रहते थे। उन्हें खुदा के नूर की अनुभूति हर क्षण होती रहती थी। एक दिन इबादत के समय उन्होंने खुदा से पूछा, 'परवरदिगार, क्या आप जन्नत में मेंरे पास जगह लेने वाले का नाम बताएँगे?!
खुदा ने कहा, 'मूसा, तेरा पड़ोसी जन्नत में भी तेरा पड़ोसी रहेगा।' मूसा यह सुनकर हतप्रभ रह गए। उनका पड़ोसी मैले-कुचैले कपड़े पहने पेड़ के नीचे बैठा जूते तैयार करता था। मूसा ने कभी उसे मसजिद जाते या नमाज पढ़ते नहीं देखा था। उन्होंने सोचा कि जब खुदा यह कह रहे हैं, तो उसमें कुछ खास बात तो होगी ही। वे उससे मिलने उसकी झोंपड़ी में जा पहुँचे। जूते गाँठने वाला व्यक्ति अपना सामान समेटकर झोंपड़ी में घुस ही रहा था।
उसने हजरत मूसा को देखा, तो अभिवादन कर विनम्र होकर बोला, “आप मेरे गरीबखाने पर पधारे, मैं आपका शुक्रगुजार हूँ। आप कुछ देर बैठिए। मैं अभी आपकी खिदमत में हाजिर होता हूँ।' इतना कहकर वह झोंपड़ी में घुस गया। जब बहुत देर हो गई, तो उन्होंने झाँककर देखा कि वह व्यक्ति बिस्तर पर पड़ी जर्जर शरीर वाली वृद्धा माँ को रूई के फाहे से दूध पिला रहा है। दूध पीते-पीते माँ को झपकी आने लगी, तब उसने माँ के पाँव दबाने शुरू कर दिए। हजरत मूसा यह दृश्य देखते ही समझ गए कि खुदा उससे माँ की अनूठी सेवा के कारण खुश हैं।
हजरत दरवाजा खोलकर अंदर पहुँच गए। वृद्धा माँ के पैरों में सिर रखकर बोले, “माँ, तेरी सेवा ने तेरे बेटे को जन्नत का हकदार बना दिया है।'

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