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हंस और मूर्ख कछुआ

विष्णु शर्मा

एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसी तालाब में दो हंस भी पानी पीने आते थे। जल्द ही हंस और कछुआ दोस्त बन गए। हंसों को छुए का भोलापन बहुत अच्छा लगता था। हंस बहुत बुद्धिमान थे। वे कछुए को नई-नई बातें बताते लेकिन कछुए को बीच में टोक टंकी करने की आदत थी। इस हालांकि हंस इसका बुरा नहीं मानते थे। वक्त के साथ उनकी दोस्ती और गहरी होती गई। एक बार भयंकर सूखा पड़ा। जिस तालाब में वे रहते थे, वह सूख गया। कछुए ने इस तालाब से निकाल कर कहीं और जाने की एक योजना बनाई। कछुए ने हंसों से बोला, “एक लकड़ी लाओ। मैं उसे बीच में दाँतों से दबा लूँगा और तुम लोग उसके किनारे अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाना और इस प्रकार हम लोग किसी नए स्थान पर चलेंगे जहां ना पानी की कमी होगी और ना खाने की।”
हंस मान गए। उन्होंने कछुए को चेतावनी दी, “तुम्हें पूरे समय अपना मुँह बंद रखना होगा। वरना तुम सीधे धरती पर आ गिरोगे और मर जाओगे।”
कछुआ तुरंत मान गया। जब सब कुछ तैयार हो गया तो हंस कछुए को लेकर उड़ चले। रास्ते में कुछ लोगों की नज़र हंसों और कछुए पर पड़ी। वे उत्साह में आकर चिल्लाने लगे, “देखो, ये हंस कितने चतुर हैं। वे अपने साथ कछुए को भी ले जा रहे हैं।”
कछुए से लोगों के द्वारा हर्ष की तारीफ सुनकर रहा नहीं गया। वह उन लोगों को बताना चाहता था कि यह विचार तो उसके मन में आया था। वह बोल पड़ा लेकिन जैसे ही उसने मुँह खोला, लकड़ी उसके मुँह से छूट गई और वह सीधे धरती पर आकर गिर पड़ा।
बच्चों यदि कछुए ने अपने अहंकार पर नियंत्रण कर लिया होता तो वह भी सुरक्षित नए तालाब में पहुँच जाता। इसलिए अपने अहंकार पर हमेशा नियंत्रण रखना चाहिए।

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