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हम तुम और वो

Updated: Aug 27, 2023

अगम प्रसाद श्रीवास्तव

मैंने कभी ये सोचा भी नही था, कि इतने लंबे अंतराल के बाद वह अचानक मेरे सामने आ खड़ी होगी। मैं कुछ देर अपने आप को देखता रह गया, लगा कि कही कोई सपना तो नहीं देख रहा हूं। अपने को चिकोटी काट कर देखा... नही ये वास्तविकता ही थी। वह मेरे सामने ही खड़ी थी। वही रूप, वही बाल, वही अंदाज, यहाँ तक कि वही मुस्कान। मैं उसे लगातार घूर रहा था, वह एक सब्जी के ठेले पर खड़ी आलू तुलवा रही थी। सिल्क की साड़ी, शायद वह खादी सिल्क थी, उसी से मैचिंग ब्लाउज, गले में मंगलसूत्र, पैरो में शानदार चप्पल, और बगल में एक सफेद या क्रीम कलर का पर्स दबा रखा है।
मैं हिम्मत कर के उसके पास पहुंच गया। मगर तब तक वो आगे बढ़ कर दूसरे ठेले पर पहुंच गई। ठेले वाला मुझसे पूछने लगा, "बाबूजी, कितने आलू तौल दूं?"। मैंने कहा के "मैं घर से थैला लाना भूल गया हूं, कल ले जाऊंगा।" फिर मैं उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया, और मैंने धीरे से कहा, "अगर मैं गलती नही कर रहा हूं, तो आप नीलम ही हैं ना?" वह एक दम झटके से पलटी और मुझे अजीब सी निगाह से देखा और फिर अपने काम में लग गई। मैं अपने को बहुत हीन समझने लगा, फिर सोचा एक बार और कोशिश कर के देखता हूं। "आपने शायद मुझे पहचाना नहीं", मैने फिर उसे संबोधित किया। वह मुड़ी और उसने गुस्से में मेरी ओर देखा और बड़बड़ाई, "अजीब शहर है, जहा पर लड़कियों को, नही बल्कि अमीर औरतों को भी लोग छेड़ते हैं, भैया, जरा इन साहब से कहो कि अपना रास्ता नापें और औरतों से छेड़खानी ना किया करें, वरना इतने जूते पड़ेंगे, कि बच्चे भी नही पहचानेंगे।" वह दो टके का भाजी वाला गुस्से से बोला, "बाबूजी आपको इस उमर में ये सब शोभा नही देता, जाइए अपना काम कीजिए।" मेरी हालत ऐसी हो गई थी मानो, भरे बाजार मुझे किसी ने नग्न कर दिया हो। मैं बेहद शर्मिंदा हुआ, और गर्दन नीचे कर वहां से हट गया। सब ठेले वाले मुझे घूर रहे थे, और मैं अपने ख्यालों में डूबा हुआ घर पहुँच गया।
राधा ने पूछा, "क्या बात है, कुछ तबियत खराब है क्या?“ मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे में आया और कपड़े बदल कर आराम कुर्सी पर अधलेटा सा बैठ गया। थोड़ी देर में राधा मेरी पत्नी उपमा और चाय ले कर आ गई। मैंने चुपचाप उसके हाथ से प्लेट लेकर चाय की चुस्की भरी और उपमा खाया, लेकिन बोला कुछ नहीं। राधा ने एक-दो बार पूछा भी, मैने कहा, "कुछ नही बस थोड़ा सिर दर्द कर रहा है।" उसने फौरन मेरी बड़ी बेटी सुमि को आवाज दी और कहा कि "अपने पापा के सिर में थोड़ी सी मालिश कर दो।" मुझे मेरी दोनों बेटियों से बहुत प्यार है। बड़ी बहुत ही गंभीर है और छोटी जो नवीं कक्षा की सबसे तेज छात्रा है मगर है बहुत चंचल। शायद उसके नाम का ही असर है - चंचल नाम माँ ने रखा था। बचपन से वह बहुत चंचल थी। माँ की तो बहुत ही लाडली थी। मैंने सूमि को वापिस भेज दिया और कमरे की बत्ती बंद कर के बिस्तर पर लेट गया, और गहन बीती बातों में खो गया।
मुझे याद आया अपने कॉलेज का वो प्रथम दिन, जब मैं सीढ़ियों से ऊपर जा रहा था और कुछ लड़कियां जीने के पास खड़ी थी। मैंने उनसे कहा, "सिस्टर साईड प्लीज" और वे सब एक तरफ हो गईं। फिर जब मैं वापिस लौटा तो उनमें से एक लड़की ने मुझे बुला कर पूछा, "तुम्हारे घर में माँ - बहन नही हैं क्या?" मैंने कहा, "माँ भी है और दो बहनें भी है।" तब वह टपाक से बोली, "क्या वह काफी नही हैं।" मैं झेंप गया और "सॉरी" कह कर वहां से बाहर निकल गया। घर आ कर मुझे वह लड़की और उसकी सभी बातें याद आती रही और मैं मुस्कुरा के रह गया।
अब तो रोज उस से मुलाकात होती और मैं कुछ झेपू टाइप का लड़का था, बोलता कुछ नही और उसे एक मुस्कुराहट देकर निकल जाता। एक दिन फिर हम लोगों का आमना-सामना हो गया और ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल गया "हेलो", और वो आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए बोली, "जनाब को बोलना भी आता है!" मैं एक बार फिर झेंप कर जाने लगा, तभी उसने बड़े ही प्यार से कहा, "मुझे नीलम कहते हैं, मुझसे दोस्ती करोगे?" और उसने अपना दाया हाथ बढ़ा दिया। मैंने अपने दोनों हाथो में उसका खूबसूरत हाथ थाम लिया और तब मुझे एहसास हुआ के काश वो हाथ मेरे हाथ में यूंही थमा रहे। फिर वह खंखारी और मैने उसका हाथ छोड़ दिया। फिर हम कैंटीन में गए, वहां उसने मुझे Thumbs-up पिलाया और कुछ देर बाद इधर उधर की बातें कर के हम लोग अलग हो गए। अब तो रोज ही हम दोनों मिलते, बातें करते और शाम को अपने अपने घर लौट जाते। वह एक बेहद अमीर घर की बेटी थी, और मैं एक मध्यम श्रेणी के परिवार से संबंध रखता था। उसको गरीबी और तंगी का एहसास नहीं था और मुझे इन सब की आदत थी। उसकी शोख अदाएं, रंग रूप, कद काठी, आदि ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था, उसके बारे में और अपने भविष्य के बारे में कि कैसे मैं उसको पाऊँ। एक दिन मैंने उस से हिम्मत कर के कह दिया, "नीलू, मैं तुमसे समुद्र की अनंत गहराई के जितना प्यार करता हूँ।" उसने झट से मेरा हाथ पकड़ कर चूम लिया और बोली, "आकाश, तुमने अपने लबों को मेरे शब्द दे दिए", और हम दोनों कसकासकर एक दूसरे की आगोश में खो गए।
इसके बाद तो हम दो प्रेमी परिंदो के जैसे प्यार के आकाश में सैर करने लगे। कब हम लोगों के फाइनल एग्जाम हुए और कॉलेज खत्म हुआ पता ही नही चला। आखरी पेपर वाले दिन, रात को बारह बजे तक साथ घूम कर बिताई। हमारा प्यार बहुत ही पवित्र था, जिसमे वासना की कही भी किसी प्रकार की कोई गुंजाइश नहीं थी। फिर वो अपने माता-पिता के साथ पन्द्रह दिनों के लिए बाहर चली गई। मेरा तो इतना बुरा हाल हो गया कि न दिन दिखता था न रात। बस उसकी तस्वीर थी और मेरी तन्हाई। मैं दीवानों की तरह उसको ढूंढता रहा और वो परछाई की तरह मुझसे भागती रही।
एक दिन मुझे उसका एक खत मिला, जिसमे सिर्फ ये लिखा था फौरन मिलो तीन बजे अपनी जगह पर। और मैं दीवानों की तरह बारह बजे से जा कर अपनी मोहब्बत का इंतजार करने लगा। वह आई ठीक सवा तीन बजे और मेरे गले से लग कर रोने लगी। फिर ना जाने क्या हुआ के उसने मेरा चेहरा चुम्बनों से भर दिया, और फिर खड़ी हो कर बोली, "अब मेरी तुम्हारी मुलाकात शायद कभी ना हो। मेरे प्यार मुझे माफ कर देना क्योंकि कल मैं अमरीका जा रही हूं, सात दिनों बाद मेरी शादी है। उसका नाम अंबर है।" क्या मुकद्दर हैं नीलम फसी भी तो आकाश और अंबर के बीच। वह रोते हुए वहां से भाग गई, मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए। मैं अचंभित सा खड़ा ही रह गया, दिल चाह रहा था की उसको आवाज दे कर रोक लूं, मगर जैसे मेरे मुंह में जुबान ही नही थी और वह चली गई। मैं अकेला हो गया, जो इंसान बुलंदियों को छूना चाहता था वह आज मात्र एक छोटी सी सरकारी नौकरी में ही संतोष पा गया। जब मेरा प्यार ही मेरे पास नहीं, तो मैं किसके लिए क्या करता। कुछ महीनों के पश्चात मेरी भी शादी हो गई। शादी के पहले मैंने राधा को देखा भी नही था, मगर राधा ने मेरे जीवन में प्रवेश कर के नीलम की यादों को भी मुझसे दूर कर दिया था। आज अगर नीलम बीस वर्षों के अंतराल के बाद नही दिखी होती तो मन इतना बेचैन कभी ना हुआ होता।
अचानक कमरे में रोशनी हो गई, राधा मेरे पास आई और सिरहाने बैठ गई, मेरी आँखें लाल हो रही थी और बदन भी गरम था। उसने मुझे क्रोसिन की गोली दी और कहा के "डॉक्टर को बुला दूं क्या?" मैंने मना किया तो उसने कहा के "आप इतने बेचैन क्यों हो, मुझे बताइए आपको नीलम की कसम।" उसके मूंह से इतने वर्षों के बाद नीलम का नाम सुन कर मैं चौंक गया, मेरे मुख से बेसाख्ता निकल गया की,"मुझे आज नीलम दिखी थी बाजार में, और उसने मुझे पहचान ने से भी इंकार कर दिया।" राधा बोली, "मुझे मालूम है, आज वह घर आई थी दोपहर में, और बच्चों व आपके लिए काफी कुछ तोहफे लाई थी, जो कमरे में रखे हैं। उनके पति अपना सारा काम अमरीका से बंद कर के इसी शहर में आ गए हैं। और कंस्ट्रक्शन का काम शुरू करने वाले हैं। वह नही चाहती है कि आप उसको देख कर कोई भी पुरानी पहचान निकाले जिससे उसको अपने पति के सामने शर्मिंदा होना पड़े। वैसे वो आपसे मिलने फिर आएगी रविवार को।" मैं राधा का मूंह देखता रह गया कि कितनी निश्चल मन से उसने एक ही सांस में सब कुछ बता दिया। अगर कही राधा का पूर्व प्रेमी इस तरह से मिला होता शायद मैं उसे सहन भी नही कर पाता। मेरा मन हल्का हो गया था। मैंने भी निश्चित कर लिया था कि अब मेरा सब कुछ मेरी राधा और सिर्फ मेरी राधा का ही हैं। किसी और का मेरी जिंदगी में प्रवेश वर्जित है। मैंने फौरन सुमी को आवाज दी कि खाना लगाओ, बहुत भूख लगी है। और राधा के मस्तक पर अपने प्यार की मोहर लगा दी।
सुमी और चंचल कमरे में आकर मेरे बिस्तर पर ही बैठ गई। मैंने तीनों को बाहों में समेट लिया और कहा कि "हम सब लोग दो दिनों के लिए पनवेल जाएंगे।" बच्चे खुशी से उछल पड़े। उनके जाते ही राधा ने पूछा, "लेकिन कल जो नीलम जी आएंगी तो?" मैंने राधा को अपनी बाहों में भर कर, कस कर भींच लिया और कहा के "आकाश के पास सिर्फ राधा है। हम दोनों के बीच जब हवा ही नही समा रही है तो नीलम जी की गुंजाइश कहा।" और राधा मुझसे लता की तरह लिपट गई। मैं आज अपने को बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था। राधा की महानता के आगे मैं नतमस्तक था।

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