अर्चना नाकरा
शादी को अभी जुम्मा-जुम्मा साल ही हुआ था। इतनी सुन्दर बहू, राशि। ऊपर से दीपावली पर मां ने सितारों जड़ी साड़ी भेजी थी। वो, बेहद खूबसूरत लग रही थी। सास बार-बार उसकी नजरें उतार रही थी। पति, राघव, तो देख देखकर निहाल हो रहे थे। दियों की जगमग उसके चेहरे की खुशी के आगे छुपती नहीं थी।
सास ने एक सुंदर सा गले में हार पहनाया, आशीर्वाद दिया और जल्दी ही एक नई खुशी घर में लाने का अनुरोध भी कर दिया। राशि और राघव दोनों ही शरमा गए थे। राशि छत पर, दिए जलाने में इतनी व्यस्त थी कि उसने देखा ही नहीं उसकी साड़ी का पल्लू कब एक जलती लौ को छू गया। पल्लू ने आग पकड़ ली थी। राशि की घरेलू मददगार 'शन्नो' उसी तरफ, दिए लेकर आ रही थी।
उसने जैसे ही राशि को देखा, तुरंत खींच कर उसकी साड़ी को अलग कर दिया। उसके भी, हाथ जल गये थे। फिर वो अपनी शाल से राशि को ढक कर नीचे ले आई थी। साड़ी का पल्लू जल चुका था। बची हुई साड़ी छत पर पड़ी मुंह चिढ़ा रही थी।
तीन-चार दिन बाद जब राशि सदमे से उबरी। तो वो छत पर गई और मां की इतने प्यार से दी वो साड़ी उठा लाई थी। मानों मां के प्यार को सहेज रही थी। करीने से काट कर उसके पल्लू को अलग किया उसको अलमारी में रखने ही जा रही थी कि सासू मां ने थोड़ी धीमी आवाज में कहा बेटा “अब ये साड़ी दोबारा नहीं पहनना।” इसे विदा कर। जली हुई साड़ी नहीं पहनते। और हां.. जो हो गया सो गया।
राशि ने देखा उसकी घरेलू मददगार शन्नो पर्दे के पीछे खड़ी, बड़ी प्यारी सी नजरों से साड़ी को ताक रही थी। राशि ने पूछा, शन्नो तुम्हें चाहिए? देखो, मैंने इसे थोड़ा ठीक कर दिया है। लेना चाहो तो, ले जा सकती हो। शन्नो खुशी-खुशी वो साड़ी घर ले गई।
शन्नो की कद काठी भी लगभग राशि जैसी ही थी। और फिर कुछ दिन बाद शन्नो वही साड़ी पहनकर राशि के घर काम कर रही थी। राशि का पति राघव ऑफिस से आया तो उसे, राशि रसोई में काम करती लगी। और उसने शन्नो को राशि समझ कर अपनी बाहों में भर लिया। शन्नो मुंह में भरकर लड्डू खा रही थी जो शायद राशि ने थोड़ी देर पहले दिया था। उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। और राघव सोच रहा था कि राशि मुड़कर मुझसे गले क्यों नहीं मिल रही?
इतनी देर में.. राशि रसोई में आकर ये सब देख कर हैरान हो गई। उसे लगा राघव.. शन्नो के साथ..
वो ज़ोर से चीखती हुई बाहर की ओर भागी। राशि की सास भी घर नहीं थी। राघव भी शन्नो को देख हैरान था। वो कभी उसे कभी, उस साड़ी को देखता! बेचारा, अपने, सिर पर हाथ मारता, परेशान हो रहा था।
बाहर सदमे से कांपती राशि को देख कर अफसोस कर रहा था। राशि ठीक तो हो गई पर एक फांस सी उसके मन में घर कर गई। राघव उसे खूब समझाता। कि मैं तो शन्नो को तुम्हारी दी साड़ी में नहीं पहचान पाया। पर तुम मुझे तो, बताती और हां आइंदा से उसे अपना कोई सूट, साड़ी ना देना, जब देना, नया ही दिलाना।
घर आकर, सासू मां भी चकरा गई थी। क्योंकि वो खुद भी बरसों पहले की गई इस गलती से महिनों अपने पति से लड़ चुकी थी।
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