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हृदय का स्पंदन

राजीव लोचन

यह उस ज़माने की बात है, जब लड़के-लड़की की शादी उनके माता-पिता या बड़े भाई-बहन तय कर देते थे। आज के ज़माने की तरह लड़का-लड़की न तो एक दूसरे को देखते थे और न ही मिलते थे। माता-पिता के कहे अनुसार ही शादी कर लेते थे। यह कहानी राजीव व परी की है। राजीव लुधियाना शहर का रहने वाला बहुत ही सुंदर नौजवान है, एक बैंक में काम करता है, अपना घर व संयुक्त परिवार है।
परी फिरोजपुर के पास एक छोटे-से गाँव में रहती है। लंबी-पतली, सुंदर। घर के सभी कामों में दक्ष। उसकी बहन की शादी लुधियाना में हुई है। एक दिन जब वह किसी काम से बैंक जाती है तो राजीव को देखकर उसे अपनी छोटी बहन का ख्याल आ जाता है। वह जाँच-पड़ताल करती है तथा राजीव के घरवालों से बात करके परी के लिए रिश्ता माँग लेती है। राजीव के घरवाले भी उसकी शादी जल्दी करवाना चाहते हैं, इसलिए वे इस शर्त पर हाँ कर देते हैं कि लड़की शादी के बाद नौकरी नहीं करेगी।
दोनों तरफ़ से रिश्ता तय हो जाने के बाद शादी की तारीख आ जाती है पर राजीव और परी ने एक दूसरे को कभी नहीं देखा, न ही फोन पर बात की, पर हाँ एक दूसरे को खत ज़रूर लिखे थे, वे भी छिपकर। शादी के दिन राजीव बहुत खुश था कि वह अपनी दुल्हन परी को देखेगा, परंतु परी तो उसके सामने ऐसे आई जैसे गठरी में किसी को लपेटा हो, चेहरा बिल्कुल भी नज़र नहीं आ रहा था। आखिर उनके रिवाज़ था कि शादी से पहले लड़का-लड़की एक दूसरे को नहीं देखते। राजीव के सारे अरमानों पर पानी फिर गया।
शादी के बाद जब वे घर वापिस आए तो कमरे में जब राजीव ने परी को देखा तो देखता ही रह गया। परी ने जब राजीव की ओर देखा तो उनकी आँखें चार हो गईं। उन दोनों को उनके सब्र का मीठा फल मिल गया। दोनों ने आँखों ही आँखों में जिन्दगी भर एक दूसरे का साथ निभाने का वादा कर लिया।

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