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मैं अत्यंत गौरवान्वित हूं कि आपने आत्मबोध को अपने हाथों में लिया। इस पुस्तक के माध्यम से मैं कुछ प्रेरणात्मक लेखों को आपसे साझा करने का प्रयत्न कर रहा हूं।

मेरा ऐसा मानना है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही हमारे मनीषियों व धर्मगुरुओं के द्वारा समाज को दिशा देने के उद्देश्य से नीति शिक्षा दी जाती रही है। यही कारण है कि पुराणों से लेकर महाभारत तक, महापुरुषों की जीवनी से लेकर उनके द्वारा रचित ग्रंथों तक सभी ऐसे सारगर्भित उपदेशों से भरे पड़े हैं, जो समाज को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते हैं।

आज के इस व्यस्त समाज में प्रबुद्ध जनों द्वारा सभी ऐसे ग्रंथों का अध्ययन एक स्वप्न हो चला है जो कि उनके व्यक्तित्व को देदीप्यमान करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। आत्मबोध इस दिशा में किया गया एक सूक्ष्मतम प्रयास है, जिसमें एक ही स्थान पर अनेकों ऐसे प्रसंगों को संकलित किया गया है, जो हमारे जीवन में पथ प्रदर्शक का कार्य करने की क्षमता रखते हैं।

मैं इस बात का दावा नहीं करता कि पुस्तक में दिए गए सभी प्रसंग हमारे अंतर्मन का सृजन हैं। बल्कि व्यवहारिक अध्ययन के दौरान धार्मिक पुस्तकों, महापुरुषों की जीवनी, समाचार पत्रों व इंटरनेट पर प्राप्त लेखों को समय-समय पर इसलिए  संकलित किया गया क्योंकि उन प्रसंगों ने मेरे विचारों को काफी हद तक उत्प्रेरित किया।

पुस्तक में चयनित प्रसंगों व कहानियों का चयन इस आधार पर किया गया है कि कहानी की रोचकता बनी रहे और सार पाठक के हृदय पटल पर अंकित हो जाए। पुस्तक की विषय वस्तु का चयन भी इस प्रकार किया गया है जो कि समाज के सभी वर्ग के पाठकों की रुचि को संतुष्ट करती हो। यदि पुस्तक में दिए गए प्रसंगों में से किसी एक ने भी आपको उद्वेलित किया तो पुस्तक की संरचना के लिए किए गए सभी प्रयास सार्थक सिद्ध हो जाएंगे।

मैं उन सभी मनीषियों का आभार मानता हूं जो ऐसा मानते हैं कि पुस्तक में उद्धत कुछ विचार उनके विचार पटल पर पहले अंकुरित हुए।

मैं, डॉo नागेंद्र स्वरूप, प्रबंधक, दयानंद शिक्षा संस्थान, कानपुर का आभारी हूं जिन के अपनत्व, स्नेह और शुभकामना ने मेरे भीतर इस दुरूह कार्य को संभव कर सकने की प्रेरणा उत्पन्न की। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आपका अनुराग, प्रेम और आशीर्वाद मुझे इसी प्रकार जीवन पर्यन्त प्राप्त होता रहेगा।

मैं, अपने सहकर्मी व दि अंडरलाइन पत्रिका के प्रधान संपादक डॉo प्रेमस्वरूप त्रिपाठी जी का हृदय से कृतज्ञ हूं, जिन्होंने भी इस कार्य के लिए मुझे प्रेरित व प्रोत्साहित किया। आपके विचारों व सुझावों ने पुस्तक की संरचना में अहम व महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मैं, अपनी पत्नी श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को धन्यवाद, जेष्ठ पुत्री डॉo कृतिका श्रीवास्तव व कनिष्ठ पुत्री कुमारी वर्तिका श्रीवास्तव को आशीर्वाद प्रेषित करना चाहता हूं कि आप लोगों ने पुस्तक के प्रेरक प्रसंगों को कई-कई बार बिना विचलित हुए सुना व पढ़ा और अपने महत्वपूर्ण सुझावों से इन प्रसंगों को और अधिक सुरुचिपूर्ण, सारगर्भित और प्रभावी बनाने में मदद की। आप सभी के धैर्य व धीरज की मैं ह्रदय से प्रशंसा करता हूं। पुस्तक संरचना की कालावधि में आप सभी का सानिध्य मेरे जीवन में एक सुंदर चिरस्मरणीय स्वप्न के रूप में सदा अंकित रहेगा।

मैं अपने पिता श्री चंद्रभान श्रीवास्तव व माता श्रीमती विजय श्रीवास्तव की चरण वंदना करता हूं, जिनके आदर्शों व संस्कारों से प्रेरित होकर, मैं इस पुस्तक को आपके सामने प्रस्तुत करने का साहस कर सका। आज संसार में यदि हमारा कुछ भी अस्तित्व है या हमारी इस जगत में कोई पहचान है तो उसका संपूर्ण श्रेय हमारे माता-पिता को ही जाता है।

मैं अपने सभी सहकर्मियों मुख्यतः डॉo श्याम जी श्रीवास्तव, डॉo सुनील श्रीवास्तव, डॉo दिनेश चंद्र सक्सेना, डॉo राजेश निगम, डॉo संजय शर्मा, डॉo सर्वेश कुशवाहा, डॉo रंजना श्रीवास्तव, डॉo संदीप शुक्ला, डॉo अशोक मिश्रा, डॉo आरo केo मिश्रा, डॉo विकास मिश्रा, डॉo अनुराग मिश्रा, डॉo आलोक श्रीवास्तव, डॉo सुधीर त्रिवेदी, डॉo एसo पीo अग्निहोत्री और श्री शैलेंद्र शर्मा का आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन से चर्चा कर विस्तृत प्रसंगों को एकत्रित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप सभी का सानिध्य ही हमारा प्रमुख प्रेरणा स्रोत रहा।

अन्य सभी सुधीजनों का भी मैं आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पुस्तक संरचना में सहयोग प्रदान किया।

अंत में मैं आप सभी प्रबुद्ध पाठकों का भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने पुस्तक के प्रस्तुत स्वरूप को स्वीकार व अध्ययन कर हमारे लिए अभिप्रेरण का कार्य किया। आपकी प्रशंसा व उत्साहवर्धन के बिना पुस्तक की सफलता पूर्णतया असंभव होगी।

आत्मबोध

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