सभी स्नेही स्वजनों को अपनी प्रथम पुस्तक आत्मबोध की अपार सफलता पर हृदय से अतुल्य कृतज्ञता प्रेषित करते और अपनी नई कृति ‘आधार’ आपके हाथों में सौंपते हुए, मैं अत्यंत गर्व का अनुभव कर रहा हूँ।
मैं अपने उन सभी सुधी पाठकों का सदैव ऋणी रहूँगा जिन्होंने आत्मबोध की यथार्थ विवेचना कर हमारी लेखन कला की मुक्त हृदय से प्रशंसा की तथा हमारा उत्साहवर्धन कर और अधिक कार्य करने की प्रेरणा उत्पन्न की।
मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि मैं एक बार पुनः आपकी अपेक्षाओं और आशाओं पर खरा उतरूँगा।
मैं, डॉo नागेंद्र स्वरूप, प्रबंधक, दयानंद शिक्षा संस्थान, कानपुर का आभारी हूँ जिन्होंने हमारी प्रतिभा को पहचान कर हमें ऐसे यथोचित अवसर प्रदान किए, जिससे मैं अपने लेखन को अधिक समृद्ध और आकर्षक बनाने में सफल रहा। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि आपका स्नेह और आशीर्वाद मुझे सदा यूं ही प्रेरित करता रहे।
मैं अपने सभी सहकर्मियों मुख्यतः डॉo श्याम जी श्रीवास्तव, डॉo सुनील श्रीवास्तव, डॉo संजय शर्मा, डॉo दिनेश चंद्र सक्सेना, डॉo सर्वेश कुशवाहा, डॉo राजेश निगम, डॉo राजेंद्र कुमार मिश्रा, डॉo विकास मिश्रा, डॉo शिव प्रसाद अग्निहोत्री, डॉo प्रवीण श्रीवास्तव और श्री शैलेंद्र शर्मा का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जिन्होंने आत्मबोध की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और प्रस्तुत पुस्तक ‘आधार’ के लेखन हेतु प्रेरित किया। ‘आत्मबोध’ से ‘आधार’ तक का सफर तय करने में आप सभी मित्रों ने जो सहयोग और साथ दिया उसके लिए आप सभी को दिल से आभार व धन्यवाद। आप जैसे प्रबुद्ध साथियों की निकटता किसी भी पत्थर को तराश कर हीरा बनाने की क्षमता रखती है।
मैं, अपने सहकर्मी व दि अंडरलाइन पत्रिका के प्रधान संपादक डॉo प्रेमस्वरूप त्रिपाठी जी के अप्रतिम सहयोग का ह्रदय से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ। आपके वैचारिक मंत्रणा से जो अमृत प्राप्त होता है, वह मुझे सकारात्मक ऊर्जा देकर, एक सुनिश्चित दिशा की ओर अग्रसर होने में अहम भूमिका अदा करता है।
मैं अपने पिता श्री चंद्रभान श्रीवास्तव व माता श्रीमती विजय श्रीवास्तव के द्वारा दिए गए आशीष एवं स्नेहिल प्रेम से ओत-प्रोत होकर उनकी चरण वंदना करता हूँ। आपकी सतत् प्रेरणा, समयानुकूल उत्साहवर्धन, शुभकामनाएँ एवं ममतामयी शुभाशीष दुरूह से दुरूह कार्य को पलक झपकते पूर्ण कर लेने का साहस प्रदान करती हैं।
मैं अपने जीवन के कंटकाकीर्ण मार्गों पर परछाई की भांति सशक्त सहयोगिनी बनकर सदैव साथ चलने वाली धर्मपत्नी श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव का हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूँ। जिनकी आनन्ददायक उपस्थिति कार्य को त्वरित क्रियान्वित करने हेतु प्रेरित करती रही। लेखन के वक्त, आपके सानिध्य की स्वर्णिम स्मृतियाँ चिरकाल तक हर्षावेश प्रदान करती रहेंगी।
मैं अपनी जेष्ठ पुत्री डॉo कृतिका श्रीवास्तव व कनिष्ठ पुत्री कुमारी वर्तिका श्रीवास्तव को आशीर्वाद प्रेषित करना चाहता हूँ जिनकी चंचल शरारतें और कोमल सानिध्य लेखन अवधि में हृदय को ताजगी और स्फूर्ति से भर देती थी। बच्चों के साथ बीते क्षणों की सुनहरी यादें जीवनपर्यंत सुखद एहसास दिलाती रहेंगी।
अंत में मैं आप सभी सुधि पाठकों का भी धन्यवाद और आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिनके प्रोत्साहन के बिना पुस्तक की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आपके विचारों और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा।
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