top of page

Search Results

793 items found for ""

Products (17)

View All

Blog Posts (742)

  • जीवन की सीख

    रमाशंकर द्विवेदी एक बार की बात है। एक खूबसूरत लड़की अपने शादी-शुदा जिंदगी से तंग आकर अपने जीवनसाथी की हत्या करना चाहती थी। एक सुबह वह दौड़कर अपनी मां के पास गई और बोली, "मां, मैं अपने पति से थक गई हूं, मैं अब उसको और उसकी बकवास का समर्थन नहीं कर सकती। मैं उसे मारना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर है कि देश का कानून मुझे जिम्मेदार ठहराएगा, क्या आप मदद कर सकती हैं। मुझे मां?" माँ ने उत्तर दिया: - हां मेरी बेटी, मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं, और जरूर करूंगी, लेकिन, एक छोटा सा काम है जो तुम्हें करना होगा क्या तुम वो कर पाओगी। बेटी ने पूछा "कौन सा काम? आप बस कहो मैं उसे बाहर निकालने के लिए कोई भी काम करने को तैयार हूं।" ठीक है, माँ ने कहा, 1.   तुम्हें उसके साथ शांति बनानी होगी, ताकि उसके मरने पर किसी को तुम पर शक न हो। 2.  उसे जवान और आकर्षक दिखने के लिए आपको खुद को संवारना होगा। 3. तुम्हें उसकी अच्छी देखभाल करनी होगी और उसके प्रति बहुत अच्छा और सराहना पूर्ण व्यवहार करना होगा। 4. तुम्हें धैर्यवान, प्रेमपूर्ण और कम ईर्ष्यालु होना होगा, अधिक सुनने वाले कान होने चाहिए, अधिक सम्मानजनक और आज्ञाकारी होना चाहिए। 5. उसके लिए अपना पैसा खर्च करने होंगा और जब वह तुम्हें किसी भी चीज के लिए पैसे ना दे तो भी नाराज नहीं होना होगा। 6. उसके खिलाफ आवाज न उठाएं बल्कि शांति और प्रेम को प्रोत्साहित करें ताकि जब वह मर चुका हो तो भी किसी को तुम्हारे ऊपर कभी भी संदेह न हो। क्या तुम यह सब कर सकती हो? माँ से पूछा। हाँ जरूर मैं बिल्कुल कर सकती हूं। उसने जवाब दिया। ठीक है, माँ ने कहा। माँ ने उसे एक चूर्ण का पैकेट दिया और उसको जानकारी देते हुए कहा की इस चूर्ण को लेकर उसके प्रतिदिन के भोजन में थोड़ा सा मिला दें, इससे वह धीरे-धीरे मर जाएगा। 30 दिन बाद महिला अपनी मां के पास वापस आई और बोली। माँ, अब मेरा अपने पति को मारने का कोई इरादा नहीं है। अब तक मुझे उससे फिर से प्यार हो गया है क्योंकि वह पूरी तरह से बदल गया है, वह अब इतना प्यारा पति है जितना मैंने कभी सोचा था। उसने रोते-रोते अपनी माँ से कहा की मैं जहर से उसे मरने से बचाने के लिए क्या कर सकती हूँ? प्लीज़ मेरी मदद करो माँ। उसने दुःखी स्वर में विनती की। माँ ने उत्तर दिया; चिंता मत करो मेरी बेटी। उस दिन मैंने तुम्हें जो दिया वह सिर्फ टरमयुरिक पाउडर था। यह उसे कभी नहीं मारेगा। वास्तव में, कहीं न कहीं तुम ही वो जहर थीं जो धीरे-धीरे आपके पति को तनाव और वैराग्य से मार रही थी। जब तुमने उससे प्यार करना, उसका सम्मान करना और उसकी देखभाल करना शुरू किया, तो तुमने उसे खुद ही बचा लिया और साथ ही साथ अपना परिवार भी। ******

  • पति प्रेम

    अर्चना सिंह एक छोटे से गांव में एक पति थक हार कर घर लौटा और अपनी पत्नी से पानी मांगा। जब पत्नी पानी लेकर आई, तो पति गहरी नींद में सो गया। पत्नी ने अपने पति के प्रति प्रेम और करुणा के कारण पूरी रात उसके पास गिलास हाथ में लिए खड़ी बिताई, यह सोचते हुए कि अगर वह जाग जाए तो उसे तुरंत पानी दे सके। यह बात पूरे गांव में फैल गई और सम्राट ने उसे उसकी निस्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित किया। सम्राट ने महसूस किया कि यह महिला प्रेम और सेवा की जीवंत मूर्ति है और उसकी संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। इस घटना से प्रेरित होकर पड़ोसी महिला ने भी रातभर अपने पति के पास गिलास लेकर खड़े होने का नाटक किया ताकि उसे भी सम्मान और पुरस्कार मिले। हालांकि, उसके अंदर प्रेम और निस्वार्थ भावना का अभाव था। सम्राट ने उसकी इस नकल और पाखंड को भांप लिया और उसे दंड दिया। उसने कहा कि करना और होना दो अलग बातें हैं। जब कर्म भावना से प्रकट होता है, तभी उसका मूल्य होता है। सम्राट ने स्पष्ट किया कि प्रेम, सेवा, भक्ति जैसी भावनाएं सिर्फ क्रियाओं से नहीं जानी जा सकतीं। इनका वास्तविक अर्थ तभी होता है जब वे हमारे हृदय में गहराई से महसूस हों। इस प्रकार की प्रामाणिकता ही सच्चा सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कराती है। नकली कृत्यों से केवल बाहरी दिखावा किया जा सकता है, परन्तु ऐसे कृत्यों में वह आत्मिक ऊर्जा नहीं होती जो सच्चे भावों से उत्पन्न होती है। जीवन में भी हम अकसर दूसरों की नकल करते हैं या उनके तरीकों को अपनाने का प्रयास करते हैं, चाहे वह किसी धार्मिक आचरण में हो या जीवन के अन्य पहलुओं में। सार - प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राह स्वयं बनानी चाहिए और अपने भावनात्मक स्तर पर ईश्वर से जुड़ना चाहिए। किसी और के तरीके या आचारण को अपनाने से केवल बाहरी दिखावा होता है और उस प्रामाणिकता का अभाव रहता है जो सच्चे प्रेम, भक्ति और सेवा के लिए आवश्यक होती है। *****

  • दिव्य कमल

    हरिशंकर गोयल "श्री हरि" गन्धमादन पर्वत पर सम्राट युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव, द्रोपदी, ऋषि धौम्य, महर्षि लोमश और अन्य साधु संत "नर नारायण" क्षेत्र में ठहरे हुए थे। सामने अलकनंदा कल कल करती हुई बह रही थी और उस क्षेत्र को जीवन दान दे रही थी। यह वह क्षेत्र था जहां "बदरी" विशाल वृक्ष पाये जाते थे। इन बदरी वृक्षों के कारण यह क्षेत्र "बद्री विशाल" के नाम से जाना जाता था। नवीं शताब्दी में यहां पर आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ मठ की स्थापना की थी। यह वह समय था जब पाण्डवों को 12 वर्ष का वनवास मिला हुआ था। अर्जुन दिव्य अस्त्र लेने के लिए तपस्या करने चले गये थे और वहीं से वे स्वर्ग लोक में देवराज इन्द्र के अतिथि बनकर रह रहे थे। अर्जुन ने कहा था कि वे पांच वर्षों के पश्चात इसी गन्धमादन पर्वत पर मिलेंगे। महाराज युधिष्ठिर सहित शेष पाण्डव अर्जुन से मिलने के लिए गन्धमादन पर्वत पर आये हुए थे। अर्जुन से मिलने के लिए सभी लोग अत्यंत व्याकुल थे। सम्राट युधिष्ठिर ऋषि धौम्य और महर्षि लोमश के साथ धार्मिक, नैतिक चर्चा करने में व्यस्त हो गये। नकुल और सहदेव उनकी सुरक्षा में तैनात थे। महाबली भीमसेन और महारानी द्रोपदी खुले आसमान में आकर प्रकृति का आनंद लेने लगे। चारों ओर फैली हुई हिमालय पर्वत श्रंखला जिसकी चोटियां बर्फ से ढकीं हुई थीं, बहुत ही रमणीक लग रही थी। इन चोटियों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती थीं तब वे किरणें उन चोटियों से ऐसे फिसल फिसल जाती थीं जैसे किसी अप्सरा के बदन से पानी की बूंदें फिसल जाती हैं और वे उस मादक बदन से जुदा होकर उसकी जुदाई में स्वत: नष्ट हो जाती हैं। पवन में ऐसी मादकता भरी हुई थी जैसे किसी नवयौवना के नयनों में सैकड़ों मधुशालाऐं भरी हुई होती हैं। चारों ओर विभिन्न प्रकार के पुष्पों की ऐसी महक आ रही थी जैसे सुन्दरियों के किसी जलसे में उनके बदन की पृथक-पृथक महकों के सम्मिश्रण से बनी अद्भुत महक आ रही हो। वह अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य भीमसेन के हृदय में प्रेम का सागर भर रहा था और भीमसेन अपने सम्मुख एक शिला पर बैठी पांचाली के नैसर्गिक सौन्दर्य को अपलक निहार रहे थे। भीमसेन द्रोपदी के लावण्य रस का पान करने लगे। "ऐसे क्या देख रहे हैं? आज पहली बार देख रहे हैं क्या मुझे, प्राण"? द्रोपदी भीमसेन को "प्राण" कहकर बुलाती थी। द्रोपदी ने अपने पांचों पतियों को पृथक पृथक संबोधन दे रखे थे। द्रोपदी को यद्यपि पांचों पाण्डव हृदय के गहनतम तल से प्रेम करते थे किन्तु भीमसेन तो द्रोपदी के हृदय में ही रहते थे। द्रोपदी के काले घुंघराले केश भीमसेन के मुख को चूम रहे थे। भीमसेन उन केशों के मधुर स्पर्श से रोमांचित हुए जा रहे थे। जिस तरह द्रोपदी का सौन्दर्य दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था उसी तरह भीमसेन के हृदय में द्रोपदी के लिए प्रेम बढ़ रहा था। जैसे ही भीमसेन द्रोपदी के लहराते हुए बालों को छूने को हुए तो द्रोपदी ने भीमसेन को रोक दिया।  "रुकिए प्राण! इन केशों को स्पर्श मत कीजिए" "पर क्यों पांचाली? क्या ये केश मेरे छूने से मैले हो जाऐंगे"? आश्चर्य से देखते हुए भीमसेन बोले। "नहीं, वो बात नहीं है प्राण। ये केश अभी अपवित्र हैं। इन्हें दुष्ट दुशासन के अपवित्र हाथों ने छुआ है। आपके हाथ तो गंगा मां की तरह पवित्र हैं। इन अपवित्र केशों को छूकर आपके हाथ अपवित्र हो जायेंगे प्राण। आपने ही तो प्रतिज्ञा ली है कि आप इन्हें दुष्ट दुशासन के रक्त से प्रक्षालित करेंगे। ये केश उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं प्राण! जिस दिन मैं अपने केश उस दुष्ट के रक्त से प्रक्षालित करूंगी, तब सर्वप्रथम आप ही इन केशों को संवारना क्योंकि तब ये केश आपके पवित्र हाथों के छूने के योग्य हो जायेंगे"। द्रोपदी की आंखों से प्रेम की बरसात हो रही थी लेकिन उनमें विवशता भी नजर आ रही थी और पीड़ा भी छुपी हुई थी जो अपनी उपस्थिति स्वयं बता रही थी। दोनों पति पत्नी इसी तरह प्रेमालाप में निमग्न थे कि हवा का एक बहुत तेज झोंका आया। उस झोंके से पांचाली का उत्तरीय हवा में उड़ गया। द्रोपदी का अनिन्द्य सौन्दर्य यकायक अनावृत हो गया। शर्म से द्रोपदी भीमसेन से लिपट गई और उसने अपने बदन को भीमसेन की विशाल छाती से ढंक लिया। इतने में एक विचित्र प्रकार का पुष्प पांचाली के सामने आकर गिरा। वह दिव्य पुष्प हरा और स्वर्ण रंग के कमल के सदृश था जो कि बहुत ही मनोहारी था। उसकी सुगंध भी दिव्य थी। द्रोपदी ने झटपट वह कमल उठा लिया और अपने कोमल अधरों से लगा लिया। भीमसेन यह अद्भुत दृश्य देख रहे थे और सोच रहे थे कि दोनों में अधिक कोमल कौन है, पांचाली के अधर या वे दिव्य सौगन्धिक कमल? "प्राण! ये कौन से पुष्प हैं? ऐसा पुष्प मैंने आज पहली बार देखा है। क्या ये कमल इस गंधमादन पर्वत पर ही मिलते हैं? मैं ऐसे बहुत से पुष्प चाहती हूं प्राण! क्या आप मेरे लिए इन्हें लेकर आयेंगे"? द्रोपदी की आंखों में उन दिव्य सौगन्धिक कमल के लिए उतनी ही प्रीति थी जितनी एक बालक के मन में प्रथम बार पूर्ण विकसित चन्द्रमा को देखकर प्रीति उपजती है और वह उसे पाने के लिए मचल उठता है। द्रोपदी भी दिव्य सौगन्धिक कमलों के लिए मचलने लगी थी। उसकी आंखें उस सौगन्धिक कमल पर चिपक गईं थीं। उसके अधर उस सौगन्धिक कमल के रस का पान कर रहे थे। द्रोपदी के हृदय में उसे पाने के लिए सागर में उठने वाले तूफान की तरह आसक्ति का तूफान उठ रहा था। पांचाली की ऐसी हालत देखकर भीमसेन ने पांचाली को अपने दोनों मजबूत बाजुओं में कसते हुए कहा। "ये दिव्य सौगन्धिक कमल हैं प्रिये! ये एक दिव्य सरोवर में होते हैं। उस दिव्य सरोवर के स्वामी यक्षराज कुबेर हैं। उस सरोवर में ऐसे सहस्त्रों दिव्य सौगन्धिक कमल खिल रहे हैं। कहो तो मैं सारे के सारे दिव्य सौगन्धिक कमल लाकर आपका श्रंगार कर दूं। या फिर आपके ऊपर उन दिव्य सौगन्धिक कमलों की बरसात कर दूं। मैं ऐसा कौन सा कार्य करूं प्रिये जिससे आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाये? मैं आपके कपोलों के मध्य भाग में स्थित गह्वर द्वय की सौगंध खाकर कहता हूं प्रिया कि मुझे जो आनंद आपकी कामना पूर्ति में आता है, वैसा आनंद तो दुष्ट दुशासन का वध करने में भी नहीं आएगा। मुझे आज्ञा दो पांचाली कि यह प्रेमी अपनी "हृदया" के लिए क्या कर सकता है जिससे उसकी प्रेमिका का संपूर्ण प्रेम उसे हासिल हो सके"? भीमसेन द्रोपदी की पलकें चूमकर बोले। "नाथ! मैं तो सदा से ही आपकी हूं। आप मेरे हृदय में उसी प्रकार बसते हैं जिस प्रकार कैलाश में भोलेनाथ, बैकुण्ठ में नारायण और ब्रह्म लोक में ब्रह्मा जी। मैंने आज प्रथम बार इन दिव्य सौगन्धिक कमलों को देखा है, इनकी कोमलता को महसूस किया है, इनकी सुगंध में डूबी हूं। इससे मेरे मन में इनके लिए एक विशेष प्रकार का राग उत्पन्न हो गया है और हृदय में कामनाओं के अनंत सागर प्रकट हो गये हैं। मैं जब भी कंत (युधिष्ठिर को द्रोपदी कंत कहकर ही बुलाती थी) को देखती हूं, दुख के सागर में निमग्न हो जाती हूं। वे इस स्थिति के लिए सदैव अपने आपको मन ही मन कोसते रहते हैं। हमारे कष्टों का हेतु वे स्वयं को समझते हैं। सम्राट का हृदय एकदम निर्मल है प्राण। उसमें अभी भी दुर्योधन के लिए कोई क्रोध, घृणा नहीं है किन्तु जुए के खेल के लिए क्षोभ अवश्य है। वे जुंआ खेलना नहीं चाहते थे प्राण, उन्होंने तो अपने "तात श्री" के आदेश का पालन किया था। उन्हें राज्य गंवाने का कोई मलाल नहीं है लेकिन उन्हें अपने अनुजों के कष्ट की वेदना अवश्य है। उन्हें अपनी प्रतिष्ठा खो देने की ग्लानि नहीं है अपितु मेरे दग्ध हृदय के कारण संताप बहुत अधिक है। मैं चाहती हूं कि ऐसे दिव्य सौगन्धिक कमलों का हार उन्हें पहनाऊं, इनका एक मुकुट बनाकर सम्राट के सूने मस्तक पर सजाऊं और उनके चरणों में दिव्य सौगन्धिक कमल चढ़ाकर मैं अपने प्रेम की पुष्पांजलि अर्पित करूं जिससे उन्हें पल दो पल को ही सही, थोड़ी सी मुस्कान तो दे सकूं। उनके चेहरे पर आने वाली एक स्मित मुस्कान मेरे लिए सौ जन्मों के वरदान के सदृश है प्राण! क्या आप मेरी ये कामना पूरी करेंगे स्वामी"? द्रोपदी के अंग अंग से याचना प्रकट हो रही थी। आंखों से, अधरों से, ग्रीवा से, उभय करों से और मुख मुद्रा से। भीमसेन के लिए द्रोपदी की प्रत्येक इच्छा भगवान का आदेश सदृश थी। प्रेम की यह कैसी रीति है कि भीमसेन अपनी प्रिया के प्रेम में उन्मत्त हो रहे हैं और द्रोपदी सम्राट युधिष्ठिर के चेहरे पर मुस्कुराहट की एक लकीर देखने के लिए अधीर हो रही हैं। इसके बावजूद भीमसेन का द्रोपदी के लिए प्रेम कम होने के बजाय और बढ़ता ही जा रहा था। "आप धन्य हैं पांचाली जो आप ज्येष्ठ के हृदय की बात जानती हैं वरना हम चारों भाई तो आज तक उनके हृदय की थाह कभी ले ही नहीं पाये। माता कुंती भी उनके हृदय के गहनतम स्थल तक पहुंच नहीं पाईं। ये आपके निश्चल प्रेम का ही परिणाम है कि आप उनकी मुख मुद्रा से ही उनके हृदय की गति भांप लेती हैं। ज्येष्ठ कभी अपने हृदय की बात नहीं बताते हैं। वे हम चारों भ्राताओं से उसी तरह स्नेह करते हैं जिस तरह परमात्मा अपने सभी जीवों से स्नेह करते हैं। मैं अभी थोड़ी देर में दिव्य सौगन्धिक कमल लेकर आता हूं। तब तक आप ज्येष्ठ को यह अहसास होने मत देना कि मैं कुबेर द्वारा रक्षित उस दिव्य सरोवर से दिव्य सौगन्धिक कमल लाने गया हूं वरना वे मेरी सुरक्षा के लिए बहुत चिंतित हो उठेंगे"। द्रोपदी के नर्म नाजुक हाथों को अपने हाथों में लेकर उन्हें चूमते हुए भीमसेन ने कहा। "वो तो ठीक है प्राण, पर कंत की सुरक्षा का क्या होगा? हृदय (द्रोपदी अर्जुन को हृदय कहकर बुलाती है) भी यहां नहीं हैं और आप भी यहां से चले जायेंगे तो क्या कंत असुरक्षित नहीं रह जायेंगे"? द्रोपदी के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। "आप ठीक कहती हैं प्रिये। यद्यपि अनुज नकुल और सहदेव दोनों पर्याप्त हैं ज्येष्ठ की सुरक्षा के लिए किन्तु मैं ज्येष्ठ की सुरक्षा की और पुख्ता व्यवस्था कर देता हूं"। कहते हुए भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच का स्मरण किया। घटोत्कच तुरंत उपस्थित हो गया और बोला। "मेरे लिए क्या आदेश है तात"? "मैं आपकी माता के लिए दिव्य सौगन्धिक कमल लेने के लिए अभी दिव्य सरोवर जा रहा हूं। जब तक मैं वापस लौटकर नहीं आ जाऊं, तब तक सम्राट और अपनी माता की सुरक्षा का ध्यान रखना पुत्र। और हां, ज्येष्ठ को तुम्हारी उपस्थिति की जानकारी नहीं होनी चाहिए नहीं तो वे मेरे लिए नाहक ही चिंता करेंगे"। "जी, उन्हें पता नहीं चलेगा, तात्"। भीमसेन पवन की गति से दिव्य सरोवर की ओर चल दिये। रास्ते में सघन वन को अपने बाजुओं से मसलते हुए वे तेजी से आगे बढने लगे। भीम द्रोपदी की हर ख्वाहिश पूरी करना चाहते थे। जब जब द्रोपदी उनसे कोई ख्वाहिश करती थीं तब तब उन्हें अपार आनंद प्राप्त होता था। द्रोपदी को ज्ञात था कि भीम उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं इसलिए वह अपनी ख्वाहिशें केवल भीम को बताती थीं। भीमसेन को इसी बात में गर्व होता था कि द्रोपदी उनसे बच्चों की तरह फरमाइश करती है। प्रेम की पराकाष्ठा अपने प्रेमी को प्रसन्न करने में है न कि अपनी मन मर्जी करने में। गंधमादन पर्वत की दुर्गम चढाई चढने के कारण द्रोपदी क्लान्त होकर बेहोश हो गई थी और भूमि पर गिर पड़ी थी तब नकुल और सहदेव ने द्रोपदी के पैर दबाकर, तलवों की मालिश कर और भांति भांति के जतन कर उनकी चेतना लौटाई थी। यही प्रेम है। प्रेम में न कोई छोटा होता है और न कोई बड़ा। प्रेम सबसे बड़ा होता है। भीमसेन उस दिव्य सरोवर तक पहुंच गये। कितना सुंदर सरोवर था वह। नील वर्णी, स्वच्छ, अमृत तुल्य। भीमसेन ने मन ही मन यक्ष राज कुबेर का स्मरण किया और उनका पूजन किया। कुबेर तत्काल वहां उपस्थित हो गये और उन्होंने भीमसेन को आज्ञा प्रदान कर दी कि वे जो भी चाहते हैं कर सकते हैं। तब भीमसेन ने सरोवर का अमृत तुल्य जल पीकर न केवल अपनी प्यास बुझाई अपितु उस जल से जीवन और बल भी प्राप्त किया। सरोवर में सहस्त्रों दिव्य सौगन्धिक कमल खिले हुए थे। वे एक तरफ से हरे रंग के थे तो दूसरी तरफ से स्वर्णिम आभा लिये हुए थे। नीचे से देखो तो हरा समंदर दिखाई देता था और ऊपर से देखो तो सूर्य भगवान की "ऊषा" के दर्शन होते थे। भीमसेन ने उन दिव्य सौगन्धिक कमलों को प्रणाम किया और उन्हें तोड़ने लगे। उनकी सुगंध भी दिव्य ही थी। यह पुष्प में ही गुण होता है जो उसको तोड़ने वाले के हाथों को भी महका देता है। भीमसेन का संपूर्ण बदन उन दिव्य सौगन्धिक कमलों को तोड़ने के कारण दिव्य सुगंध से महक रहा था। भीमसेन ने हजारों कमल तोड़कर अपने उत्तरीय में बांध लिये थे। उनके चेहरे पर अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। भीमसेन ने सहस्त्रों दिव्य सौगन्धिक कमल लाकर द्रोपदी के चरणों में डाल दिये। एक साथ इतने दिव्य सौगन्धिक कमल देखकर द्रोपदी प्रसन्न होकर नृत्य करने लगी। बाद में उसने उनके विभिन्न आभूषण बनाये और सम्राट युधिष्ठिर को अपने हाथों से पहनाये। प्रेम का इससे श्रेष्ठ उदाहरण और क्या हो सकता था? *****

View All

Other Pages (31)

  • Love | Rachnakunj

    Stories LOVE हरिशंकर गोयल "श्री हरि" दिव्य कमल 8 0 comments 0 Post not marked as liked विकास यादव निश्चिन्ती 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 उर्मिला तिवारी चैन से जीने दो 6 0 comments 0 Post not marked as liked नीरजा कृष्णा कागज की नाव 20 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 श्रीपाल द्विवेदी कमज़ोर लइकी 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रति गुप्ता इम्तहान 15 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 बालेश्वर गुप्ता एक ऐसा भी सांप 1 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 नीलिमा मिश्रा सफर 10 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 रचना कंडवाल फिर एक बार… 20 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 निर्मला कुमारी एक दिन की छुट्टी 11 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 दिनेश दुबे दीवाना 11 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 रवीन्द्र कान्त त्यागी आ गले लग जा…. 17 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 विनय कुमार मिश्रा खुशियों का सौदा 16 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 रीता कुमारी आगमन एक बसंत का 6 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 विभा गुप्ता खूबसूरत झांसा 12 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 लक्ष्मी कांत तनातनी 1 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 विभा गुप्ता अच्छाई की जीत 40 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 भगवती सक्सेना गौड़ रोमांटिक वॉक 13 0 comments 0 4 likes. Post not marked as liked 4 विभा गुप्ता नैनों के पेंच 4 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 प्रवीण केट सच्चा प्यार 0 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 Do you want to publish your story? JUST WRITE TO rachnakunjindia@gmail.com

  • Loyalty | Rachnakunj

    Loyalty Program is not available.

  • Read Stories Online | Rachnakunj

    Latest Collection कहानियों की दुनिया Rachna kunj रचनाकुंज में प्रकाशित कहानियों, कविताओं और उपन्यासों के द्वारा शब्दों के जादू, अभिव्यक्ति की सुंदरता और भावनाओं की शक्ति का आनंद लें क्योंकि हम प्रतिभाशाली लेखकों और कवियों के कार्यों का प्रदर्शन करते हैं। मूल्य ₹210 Free 5 वर्ष की सदस्यता शुल्क के साथ O (24) O (31) Rachnakunj O (24) 1/355 WhatsApp FAQs Latest Collection See Complete Collection रमाशंकर द्विवेदी 21 hours ago 2 min read जीवन की सीख 0 0 comments 0 Post not marked as liked अर्चना सिंह 2 days ago 2 min read पति प्रेम 1 0 comments 0 Post not marked as liked हरिशंकर गोयल "श्री हरि" Nov 4 8 min read दिव्य कमल 8 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Nov 3 3 min read निषिद्ध भोजन 7 0 comments 0 Post not marked as liked रूपाली सिंह Oct 31 3 min read 1 रू के बदले 100 रू 19 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 ब्रिज उमराव Oct 30 1 min read संस्कार 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 मुकेश ‘नादान’ Oct 29 2 min read माँ काली की उपासना 2 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रमाकांत द्विवेदी Oct 28 2 min read बेशकीमती दौलत 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 26 1 min read खोमचे वाला 5 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 25 2 min read सारा की छड़ी 2 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Oct 24 2 min read स्वप्न 2 0 comments 0 Post not marked as liked डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 23 2 min read लोहार 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 प्रेम साधना Oct 22 3 min read आजादी 4 0 comments 0 Post not marked as liked आकाश बाजपेयी Oct 17 4 min read मेरी माँ 31 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 17 3 min read असली मानवता 13 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 निरंजन धुलेकर Oct 16 2 min read सज़ा 11 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 सुनील त्रिपाठी Oct 16 2 min read दूरी 11 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 मुकेश ‘नादान’ Oct 13 2 min read ईश्वर के प्रति विद्रोह 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 स्नेहा सिंह Oct 13 5 min read सफल जन्म 18 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 विकास यादव Sep 30 2 min read निश्चिन्ती 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रंजना मिश्रा Sep 30 2 min read मुक्ति 18 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 रमाकांत शुक्ला Sep 30 2 min read बूट पॉलिश 11 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 अभिलाषा कक्कड़ Sep 17 7 min read ममता 17 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 उर्मिला तिवारी Sep 17 4 min read चैन से जीने दो 6 0 comments 0 Post not marked as liked रमाकांत शर्मा Sep 15 8 min read मोहन का पेपर 14 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 नीरजा कृष्णा Sep 13 2 min read कागज की नाव 20 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 डॉ. जहान सिंह ‘जहान’ Sep 12 1 min read प्यार जितना पुराना। उतना ही सुहाना है। 158 0 comments 0 9 likes. Post not marked as liked 9 मनीषा सहाय Sep 10 2 min read बहु भी बेटी 33 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Sep 10 2 min read वक्त का बदला 25 0 comments 0 6 likes. Post not marked as liked 6 उषा Sep 8 10 min read कोई है? 36 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 आनंद किशोर Sep 7 3 min read सच्चा उपहार 30 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 सरला सिंह Sep 6 2 min read घर का भोजन 4 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 निर्मला ठाकुर Sep 6 8 min read जलील 25 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 सरला सिंह Sep 5 7 min read और क्या चाहिए? 15 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 शुभ्रा बैनर्जी Sep 5 3 min read बात जो भारी पड़ गई 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 शंकर शैलेंद्र Aug 30 1 min read ज़िंदगी अरमान बनके गुनगुनाई 22 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 राजश्री जैन Aug 30 2 min read सुखांत 9 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 श्रीपाल द्विवेदी Aug 28 3 min read कमज़ोर लइकी 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रति गुप्ता Aug 28 2 min read इम्तहान 15 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रमाकांत द्विवेदी Aug 26 2 min read भगवान् की लाठी 12 0 comments 0 Post not marked as liked Stories Motivational Love Drama रमाशंकर द्विवेदी 21 hours ago 2 min read जीवन की सीख 0 0 comments 0 Post not marked as liked अर्चना सिंह 2 days ago 2 min read पति प्रेम 1 0 comments 0 Post not marked as liked हरिशंकर गोयल "श्री हरि" Nov 4 8 min read दिव्य कमल 8 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Nov 3 3 min read निषिद्ध भोजन 7 0 comments 0 Post not marked as liked रूपाली सिंह Oct 31 3 min read 1 रू के बदले 100 रू 19 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 मुकेश ‘नादान’ Oct 29 2 min read माँ काली की उपासना 2 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रमाकांत द्विवेदी Oct 28 2 min read बेशकीमती दौलत 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 26 1 min read खोमचे वाला 5 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 25 2 min read सारा की छड़ी 2 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Oct 24 2 min read स्वप्न 2 0 comments 0 Post not marked as liked डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 23 2 min read लोहार 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 प्रेम साधना Oct 22 3 min read आजादी 4 0 comments 0 Post not marked as liked आकाश बाजपेयी Oct 17 4 min read मेरी माँ 31 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव Oct 17 3 min read असली मानवता 13 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 निरंजन धुलेकर Oct 16 2 min read सज़ा 11 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 सुनील त्रिपाठी Oct 16 2 min read दूरी 11 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 स्नेहा सिंह Oct 13 5 min read सफल जन्म 18 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 विकास यादव Sep 30 2 min read निश्चिन्ती 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 रंजना मिश्रा Sep 30 2 min read मुक्ति 18 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 रमाकांत शुक्ला Sep 30 2 min read बूट पॉलिश 11 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 Poems Love Sorrowful General ब्रिज उमराव Oct 30 1 min read संस्कार 4 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 डॉ. जहान सिंह ‘जहान’ Sep 12 1 min read प्यार जितना पुराना। उतना ही सुहाना है। 158 0 comments 0 9 likes. Post not marked as liked 9 शंकर शैलेंद्र Aug 30 1 min read ज़िंदगी अरमान बनके गुनगुनाई 22 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 सन्दीप तोमर Jul 18 1 min read कितना मुश्किल है... 9 0 comments 0 3 likes. Post not marked as liked 3 नवीन रांगियाल Jul 16 1 min read सबसे प्रेम किया 2 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 जसिंता केरकेट्टा Jul 14 1 min read मातृभाषा की मौत 2 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 अदनान कफ़ील दरवेश Jul 3 2 min read स्त्री की हत्या 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 अशोक कुमार बाजपाई Jun 15 1 min read एक पेड़ हमने लगाया 27 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 सन्दीप तोमर May 13 1 min read क्या कुछ बदला 1 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 कुँवर नारायण May 11 1 min read संभावनाएँ 5 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 1 2 3 4 5 Read More Novels View More Rachnakunj . Nov 11, 2023 3 min read आधा गांव 2 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Oct 28, 2023 2 min read वापसी 2 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Oct 9, 2023 4 min read अदल बदल 1 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Sep 7, 2023 7 min read गोदान 0 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Aug 25, 2023 6 min read परिणीता 1 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Aug 3, 2023 3 min read चंद्रकांता 1 0 comments 0 Post not marked as liked Rachnakunj . Jul 4, 2023 3 min read सूरज का सातवां घोड़ा 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 Biographies View More मुकेश ‘नादान’ Nov 3 3 min read निषिद्ध भोजन 7 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Oct 29 2 min read माँ काली की उपासना 2 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 मुकेश ‘नादान’ Oct 13 2 min read ईश्वर के प्रति विद्रोह 3 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 मुकेश ‘नादान’ Apr 8 2 min read पिता का देहांत 33 0 comments 0 Post not marked as liked मुकेश ‘नादान’ Apr 3 2 min read नरेंद्र की जीत 37 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 मुकेश ‘नादान’ Mar 30 1 min read अँगरेजी भाषण 0 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 मुकेश ‘नादान’ Mar 25 3 min read जीवन का लक्ष्य 1 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 मुकेश ‘नादान’ Mar 15 2 min read नरेंद्र की परीक्षा 5 0 comments 0 2 likes. Post not marked as liked 2 मुकेश ‘नादान’ Mar 9 2 min read महर्षि देवेंद्रनाथ से भेंट 2 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 Rachnakunj . Oct 13, 2023 1 min read ब्रह्मसमाज का त्याग 1 0 comments 0 1 like. Post not marked as liked 1 Buy your favourite books Shop Now रचनाकुंज हमारे सभी कवियों, लेखकों और कहानीकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है जो हमारी वेबसाइट के माध्यम से अपने रचनात्मक लेखों को प्रबुद्ध पाठकों तक पहुंचाने में हमारी मदद कर रहे हैं। Subscribe to get exclusive updates Join Our Mailing List Thanks for subscribing!

View All
bottom of page